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प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ सू० २ नैरयिकाणां समानाहारादिनिरुपणम् २३ केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-नैरयिकाः नो सर्वे समक्रियाः ? गौतम ! नैरयिका खिविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-सम्यग्र दृष्टयः, मिथ्यादृष्टयः, सम्यग् मिथ्यादृष्टयः, तत्र खलु ये ते सम्यग दृष्टयस्तेषां चतस्रः क्रियाः क्रियन्ते, तद्यथा-आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानक्रिया, तत्र खलु ये ते मिथ्यादृष्टयो ये सम्यग् मिथ्यादृष्टयस्तेषां खलु नियता: पञ्चक्रियाः क्रियन्ते, तद्यथा-आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यान क्रिया, मिथ्यादर्शनप्रत्यया, तत् तेनार्थेन खलु गौतम ! एवमुच्यते नैरयिकाः नो सर्वे समक्रियाः, समान क्रियावाले हैं ? (गोयमा ! णो इणढे समद्दे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है (से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ) हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि (नेरइया णो सब्वे समकिरिया ?) नारक सब समान क्रियावाले नहीं हैं (गोयमा ! नेरइया तिविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! नारक तीन प्रकार के हैं (तं जहा) ये इस प्रकार (समदिट्ठी, मिच्छट्टिी, सम्ममिच्छट्टिी) समग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यगमिथ्यादृष्टि (तत्थ णं जे ते सम्मदिट्टी) उनमें जो सम्य. ग्दृष्टि हैं (तेसिणं) उनको (चत्तारि किरियाओ कज्जति) चार क्रियाएं होती हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (आरंभिया) आरंभिकी (परिग्गहिया) पारिग्राहिकी (मायावत्तिया) मायाप्रत्यया (अपच्चक्खाणकिरिया) अप्रत्याख्यान किया (तत्थ णजे ते मिच्छट्टिी) उनमें जो मिथ्यादृष्टि हैं (जे सम्मामिच्छद्दिट्टी) जो सम्यमिथ्यादृष्टि हैं (तेसि णं नियताओ पंच किरियाओ कज्जति) उनको निश्चय से पांच क्रियाएं होती हैं (तं जहा-आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्वाणकिरिया, मिच्छादसणवत्तिया) ये इस प्रकार-आरंभिकी पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानक्रिया, मिथ्यादर्शनप्रत्यया (से तेणष्ट्रेणं गोयमा ! एवं ठियाणा छ ? (गोयमा ! णो इणटे समटे) र गौतम ! २ म समय नथी (से केण ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ) ॐ भगवन् ! At २४थी मे ४ छे , (नेरइया णो सब्वे समकिरिया ?) ना२४ मा समान यि नथी (गोयमा ! नेरइया तिविहा पण्णत्ता) है गौतम ! ना२४ २ना छे. (तं जहा) ते 24॥ २ (सम्मदिट्ठी, मिच्छदिदि, सम्ममिच्छदिदि) सभ्यष्टि, मिथ्याट मन सभ्यभिथ्याट (तत्थणं जे ते सम्मद्दिष्ट्रि) तयामा रे सभ्य छ (तेसिंणं) तेमाने (चत्तारि किरियाओ कन्जंति) या२ या थाय छ (तं जहा) ते मा प्रा३ (आरंभिया) मामिडी (पस्गिहिया) पारिवाीि (मायावत्तिया) भाया प्रत्यया (अपच्चक्खाणकिरिया) मप्रत्याभ्यानाध्या (तत्थणं जे ते मिच्छादिद्री) तमाम २ मिथ्याट छ (जे सम्मामिच्छादिद्वी) रे सभ्य भय्या ष्ट छ (ते सिणं नियताओ पंच किरियाओ कजति) तेमनी निश्चयथी पांय छिया। थाय छ (त जहा-आरंभिया परिग्गहिया-मायावत्तिया-अपच्चक्खाण किरिया, मिच्छादसणवत्तिया) ते मा प्ररे-सामी , पारिया, भायाप्रत्यया, अप्रत्याभयानापिया, Hel प्रत्यया (से सणटेणं गोयमा ।
श्री. प्रशान। सूत्र:४