________________
३१६
प्रज्ञापनासूत्रे
"
हन्त, गौतम ! जनयेत्, नवरं चतसृषु लेश्यासु षोडश आलापका एवम् अन्तद्वीपगानामपि । इति प्रज्ञापनायां भगवत्यां लेश्यापदं समाप्तम् । सप्तदशं पदश्च समाप्तम् ।। सू० २३ ॥
टीका - पञ्चमोदेशके नैरयिकदेवलेश्यानां परिणामान्तराभावः प्रतिपादितः अथ षष्ठोदेश के कृष्णादिलेश्यानामेव पुनवैशिष्टयान्तरं प्रतिपादयितुमाह- 'कइ णं भंते ! लेस्सा पणता ?' हे भदन्त ! कति - कियत्यः खलु लेश्याः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह - 'गोयमा !' हे गौतम ! 'छलेस्सा पण्णत्ता' पड्लेश्याः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा - कण्हलेस्सा जाव मुकलेस्सा'
अकर्म भूमि का कृष्णलेश्या वाला मनुष्य अकर्म भूमि की कृष्णलेश्या वाली स्त्री से कर्म भूमि कृष्णलेश्या वाला गर्भ को उत्पन्न करता है ? (हंता गोयमा ! जणेज्जा) हां गौतम ! उत्पन्न करता है (नवरं चउसु लेस्तासु) विशेष चार लेश्याओं में (सोलस आलावगा) सोलह आलापक ( एवं अन्तरदीवगाण वि) इसी प्रकार अंतरद्वीपों के भी ।
(इति पण्णवणाए भगवई लेस्सापयं समत्तं सत्तरसं यं च समन्तं) प्रज्ञापना भगवती का लेश्या पद समाप्त । सत्तरहवां पद समाप्त
टीकार्थ- पांचवें उद्देशक में नारकों और देवों में लेश्या का परिवर्तन नहीं होता, यह प्रतिपादन किया गया था। इस छठे उद्देशक में कृष्ण आदि श्याओं की विशेषता का प्रतिपादन किया जाता है
गौतमस्वामी - हे भगवन् ! लेश्याएं कितनी कही गई हैं ?
1
भगवान् - हे गौतम ! छह लेश्याएं कही गई हैं । वे इस प्रकार हैं- कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या । गौतमस्वामी - हे भगवन् ! मनुष्यों को कितनी लेश्याएं कही हैं ?
भगवान् - हे गौतम ! छह लेश्याएं कही हैं, वे इस प्रकार हैं- कृष्णलेश्या, नीलपाणी स्त्रीथी सम्र्मभूमि कृष्णुलेश्यावाणा गलने उत्पन्न पुरे छे ! ( हंता गोयमा ! जणेज्जा) हा, गौतम ! उत्पन्न पुरे छे (नवरं चउसु लेस्सासु) विशेष - यार बेश्यायामां (सोलस आलावगा) सोण आसाय ( एवं अन्तर दीवगाण वि) से प्रहार तर द्वीपमा पशु (इति पण्णवणाए भगवइए लेस्सापयं समत्तं, सत्तरसं पर्यं च समत्तं ) પ્રજ્ઞાપના ભગવતીનું લેશ્યાપદ સમાપ્ત, સત્તરમું પદ સમાસ,
ટીાકા-પાંચમા ઉદ્દેશકમાં ન રકા અને દેવામાં લેશ્યાના પરિવન થતા નથી એ પ્રતિપાદન કરાયું હતું. આ છઠ્ઠા ઉદ્દેશકમાં કૃણુ આદિ લેશ્યાઓની વિશેષતાનું પ્રતિપાદન
डराय छे
શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્ ! લૈશ્યાઓ કેટલી કડેલી છે ?
श्री भगवान् !-डे गौतम ! छोश्याओ। ऐसी छे. ते या अरे-ष्णोश्या, नीलबेश्या, अयोतवेश्या, तेलेोश्या, यहूमलेश्या भने शुभ्ससेश्या.
શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્ ! મનુષ્ચાની કેટલી લેશ્યા કહી છે?
श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४