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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ सू० २३ मनुष्यादीनां लेश्यासंख्यानिरूपणम् ३१३ मनुषीणामपि, एवम् अन्तरद्वीपमनुष्याणां मानुषीणामपि, एवं हैमवतैरवताकर्मभूमिगमनुः ज्याणां मानुषीणाश्च कतिलेश्याः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! चतस्रः, तद्यथा-कृष्णा यावत् तेजोलेश्या, हरिवर्षरम्यकाकर्मभूमिगमनुष्याणां मानुषीणाश्च पृच्छा, गौतम ! चतस्रः, तद्यथाकृष्णा यावत तेजोलेश्या, देवकुरूत्तर कुरु-अकर्मभूमिगमनुष्या एवञ्चैव, एतासाश्चैव मानुषीणाम् एवश्चैत्र, धातकीखण्डपूर्वार्द्धऽपि एवञ्चैत्र, पश्चिमाद्देऽपि, एवं पुष्करद्वीपेऽपि भणितध्यम्, कृष्ण लेश्यः खलु भदन्त ! मनुष्यः कृष्ण लेश्यं गर्भ जनयेत् ? हन्त, गौतम ! जनयेत, लेश्याएं कही है (तं जहा-कण्हा जाव तेउलेस्सा) वे इस प्रकार-कृष्ण यावत् तेजोलेश्या (एवं अकम्मभूमिगमणुस्सीण चि) इसी प्रकार अकर्मभूमि की मानुषियों को भी (एवं अंतरदीव मणुस्साणं मणुस्सीण वि) इस प्रकार अन्तरद्वीप के मनुष्यों और मनुष्यनियों को भी (एवं हेमवथएरन्नवय अकम्मभूमयमणुस्साणं मणुस्सीण य कइ लेस्लाओ पण्णत्ताओ) इसी प्रकार हैमवत एवं ऐरण्ययत् अकमभूमि के मनुष्यों और मनुष्यनियों को भी कितनी लेश्याएं कही है ? (गोयमा! चत्तारि) हे गौतम ! चार (तं जहा-कण्हा जाव तेउलेस्सा) वे इस प्रकार-कृष्ण यावत् तेजोलेश्या (हरियासरम्मगवास अकम्मभूमयमणुस्साणं मणुस्सीण य पुच्छा ?) हरिवर्ष-रम्यक वर्ष अकर्मभूमि के मनुष्यों और मनुष्यनियों संबंधी पृच्छा ? (गीयमा ! चत्तारि, तं जहा-कण्हा जाव तेउलेस्सा) हे गौतम ! चार यथा कृष्ण यावत् तेजोलेश्या (देवकुरु उत्तरकुरु अकस्मभूमयमणुस्सा एवं चेच) देवकुरु और उत्तरकुरु अकर्मभूमि के मनुष्य इसी प्रकार ( एतेसिं चेव मणु. स्सीणं एवं चेव) इन की मनुष्यनियों की इसी प्रकार (धायइसंडपुरिमद्धे वि एवं चेव) धातकोखंड के पूर्वार्ध में भी इसी प्रकार (पच्छिमद्धे वि) पश्चिमाध में भी 38 छ (त जहा कण्हा जाव तेउलेस्सा) ते २॥ प्रारे-५५५ यापत् तेवेश्या (एवं अकम्मभूमिग मणुस्सीण वि) २४ ५४२ ५४मभूमिनी भानुपियानी ५९४ (एवं अंतर दीव मणुस्साणं मणुस्सीण वि) से मारे मन्तवीपना मनुष्यो भने मनुष्यनीयाना पY (एवं हेमवए एरन्नवय अकम्भूमय मणुस्साणं मणुस्सीणं य कइ लेस्साओ पण्णत्ताओ) मे परे हैभपत तेभर भैरवत म४ भूभिना भनुध्यो भने मनुष्यनियोनी सी वेश्याम ही छ ? (गोयमा ! चत्तारि) गौतम ! यार (त जहा-कण्हा-जाव तेउलेस्सा) तेभ्यो ॥ प्रारे- यात् तनवेश्या (हरिवास रम्मयवास अकम्भभूमय मणुस्साणं मणुस्सीण य पुच्छा) हरि१५, २भ्य. १ मम भूमिना मनुष्योना मने मनुष्यानधा १२७? (गोयमा ! चत्तारि, तंजहाकण्हा जाव तेउलेस्सा) : गौतम ! यार-भ- यापत्त नलेश्या (देवकुरु, उत्तरकुरु, अकम्मभूमय मणुस्सा एव चेव) १३ भने उत्त२७३ मभूमिना मनुष्य मे प्रहार (एएसिं चेमणुस्सीणं एवं चेव) तेमनी मनुष्यनियोनी मे प्रारे (धायइखंडपुरिमद्धे वि एवं चेव) यातीमना पूधि भी मे प्रा३ (पच्छिमद्धे वि) पश्चिमाधमा ५९ प्र० ४० श्री. प्रशान। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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