SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ सू० २१ लेश्यास्थाननिरूपणम् तया असंख्येयगुणानि, एवं जघन्यानि कृष्णलेश्यास्थानानि तेजोलेश्यास्थानानि पद्म लेश्शास्थानानि द्रव्यार्थतया असंख्येयगुणानि, जयन्यानि शुक्ललेश्यास्थानानि द्रव्यार्थतया असंख्येयगुणानि, जघन्येभ्यः शुक्लेश्यास्थानेभ्यो द्रव्यार्थिकेभ्यो जघन्यानि कापोतलेश्यास्थानानि प्रदेशार्थतया असंख्येयगुणानि, जयन्यानि नीलले श्यास्थानानि प्रदेशार्थतया असंख्येयगुणानि, एवं यावत् शुक्ललेश्यास्थानानि, एतेषां खलु कृष्णलेश्यास्थानानां अपेक्षा कापोतलेश्या के जघन्य स्थान सब से कम हैं (जहन्नगा नीललेस्साठाणा दव्वयाए असंखेज्जगुणा) नीललेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणा हैं (एवं कण्हलेस्साठाणा) इसी प्रकार कृष्णलेश्या के स्थान (तेउ. लेस्साठाणा) तेजो लेश्या के स्थान (पम्हलेस्साठाणा) पदमलेश्या के स्थान (जहन्नगा) जघन्य (सुक्कालेस्सा ठाणा) शुक्लुलेश्या के स्थान (दव्वट्टयाए असंखेज्ज गुणा) द्रव्य की अपेक्षा असंख्यात गुणा हैं । (जहन्नएहितो सुक्कलेस्साठाणेहितो दवट्टएहितो जहन्न काउलेस्सा ठाणा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा) जघन्य द्रव्य की अपेक्षा शुक्ललेश्या के स्थनों से जघन्य कापोतलेश्या के स्थान प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यात गुणा हैं (जहन्नया नीललेस्सा ठाणा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा) जघन्य नीललेश्या के स्थान प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यातगुणा हैं (एवं जाव सुक्कलेस्साठाणा) इस प्रकार यावत् शुक्ललेश्या के स्थान भी समझलेवें। (एएसिणं कण्हलेस्साठाणाणं जाव सुक्लेस्साठाणाण य उक्कोसगाणं) इन कृष्णलेश्या के यावत् शुक्ललेश्या के उत्कृष्ट स्थानों में (दव्वट्टयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठपएसट्टयाए) द्रव्य की अपेक्षा, प्रदेशों की अपेक्षा और द्रव्य तथा प्रदेशों (दव्वटुपएसट्टयाए सव्बत्थोत्रा जहण्णगा काउलेस्सा ठाणा) द्रव्य अने प्रशानी मपेक्षा पोतोयना धन्य स्थान माथी माछ। छे (जहण्णगा नीललेस्सा ठाणा व्वदयाए असंखेज्जगुणा) नासोश्याना धन्य स्थान द्रव्यनी अपेक्षाये असभ्याएछ (एवं कण्डलेस्सा ठाणा) मे४ ५४ारे वेश्याना स्थान (तेउलेस्सा ठाणा) वेश्याना स्थान (पम्हलेस्सा ठाणा) पद्मवेश्याना स्थान (जहण्णगा) धन्य (सुक्कलेस्सा ठाणा) शुरयाना स्थान (दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा) द्रव्यनी सपेक्षा मण्यात छ (जहण्णएहिंतो सुक्कलेस्साठाणे हितो दबटुएहितो जहण्ण काउलेस्सा ठाणा पएसट्रयाए असंखेज्जगुणा) धन्य द्रव्यनी अपेक्षा शुश्याना स्थानाथा घन्य अपातोश्याना स्थान प्रशानी अपेक्षा असता छ (जहण्णगा नीललेस्सा ठाणा पएसयाए असं. खेज्जगणा) वन्य नीसवेश्याना स्थल प्रशानी मपेक्षा यात।छे (एवं जान सुकलेस्सा ठाणा)ये प्र४ारे यावत् शुसवेश्याना स्थान समपा. ___ (एएसिणं कण्हलेस्सा ठाणाणं जाव सुक्कलेस्सा ठाणाण य उक्कोसगाणं) 21 वेश्याना यावत् राखलेश्यानGट स्थानामा (दन पाए पएसटुयाए वटुपएसट्टयाए) दयनी अपेक्षा, श्री. प्रशान। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy