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प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ सू० २१ लेश्यास्थाननिरूपणम्
२७५ कृष्णलेश्यास्थानानां यावत् शुक्ललेश्यास्थानानां च जघन्यानां द्रव्यार्थतया प्रदेशार्यतया द्रव्यार्थपदेशार्थतया कतराणि कतरेभ्योऽल्पानि वा बहुकानि वा तुल्यानि वा विशेषाधिकानि ना ? गौतम ! सर्वस्तोकानि जघन्यानि कापोतलेश्यास्थानानि द्रव्यार्यतया, जघन्यानि नीललेश्यास्थानानि द्रव्यार्थतया असंख्येयगुणानि, जघन्यानि कृष्णलेश्यास्थानानि द्रव्यार्यतया असंख्येयगुगानि, जघन्यानि तेजोलेश्यास्थानानि द्रव्यार्थतया असंख्येयगुणानि, जघन्यानि पद्मलेश्या स्थानानि द्रव्यार्थतया असंख्येयगुणानि, जघन्यानि शुक्ललेश्यास्थानानि कृष्णलेश्या के कितने स्थान कहे हैं ? (गोयमा ! असंखेजा कण्हलेस्साणं ठाणा पण्णत्ता) हे गौतम ! कृष्णलेश्या के असंख्यात स्थान कहे हैं (एवं जाव सुक्कलेस्सा) इस प्रकार यावत शुक्ललेश्या के (एएसि णं भंते ! कण्हलेस्साठाणाणं जाव सुक्कलेस्साठाणाण य जहन्नगाणं) हे भगवन् ! इन कृष्णलेश्या यावत शुक्ललेश्या के जघन्य स्थानों में (दवट्टयाए पएसट्टयाए दवट्ठपएसहयोए) द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से और द्रव्य प्रदेशों की अपेक्षा से (कयरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा?) अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? (गोयमा! सम्वत्थोवा जहन्नगा काउलेस्साठाणा दग्वट्ठयाए) हे गौतम ! सब से कम जघन्य कापोतलेश्या के स्थान हैं द्रव्य की अपेक्षा से (जहन्नगा नीललेस्साठाणा व्वट्टयाए असंखेजगुणा) नीललेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं । (जहन्नगा कण्हलेस्साठाणा व्वयाए असंखेजगुणा) जयन्य कृष्णलेश्या के स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणा हैं (जहन्नतेउलेस्साठाणा दग्वट्ठयाए असंखज्जगुणा) जघन्य तेजोलेश्या के स्थान द्रव्य की अपेक्षा असंख्यातगुणा है (जहन्नगा पम्हસ્થાન કહ્યાં છે?
(गोयमा ! असंखेज्जा कण्हलेस्साणं ठाणा पण्णत्ता) गौतम वेश्याना मध्यात स्थान Bai छ (एवं जाव सुकलेत्सा) से सरे यावत् शुश्याना स्थान समi.
(एएसिणं भंते ! कण्हलेस्साठाणाणं नाव सुक्कलेसाठाणाण य जहन्नगाणं) भगवन् ! भावेश्या यावत् शु
न्य स्थानमा (दव्वदयाए पएसट्टयाए दव्वटुपएसट्टयाए) द्रव्यानी अपेक्षाथी प्रशानी अपेक्षाथी भने द्रव्य-प्रशानी अपेक्षाथी (कयरे कयरेहितो)
नाथी (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा) ५६५, मधि:, तुल्य मया विशेषाधि छ? (गोयमा ! सव्वत्थोवा जहन्नगा काउलेस्सा ठाणा दवट्ठयाए) गौतम ! मधा. थामेछ। धन्य पातोश्याना स्थान छ द्र०यनी अपेक्षाथी (जहन्नगा नीललेस्सा ठाणा दव्यद्वयाए असंखेज्जगुणा) नीसवेश्याना धन्य स्थान द्र०यनी अपेक्षा असभ्याताया छे (जहन्नगा कण्हलेस्सा ठाणा दबट्टयाए असंखेज्जगुणा) धन्य कृष्णवेश्याना स्थान दयनी अपेक्षा अध्यात छे (जहन्नगा वेउलेस्सा ठाणा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगणा)
श्री. प्रशान। सूत्र:४