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___ प्रज्ञापनासत्र वा, निम्बसार इति वा, निम्बत्वगिति वा, निम्बफाणितमिति वा, कुटज इति वा कुटजफलमिति वा कुटजत्वगिति वा, कुटजफाणितमिति वा, कटुकतुम्बी इति वा कटुकतुम्बीफलमिति वा क्षारत्रपुषी इति वा क्षारत्रपुषीफलमिति वा देवदाली इति वा देवदाली पुष्पमिति वा मृगवालङ्की इति वा मृगवालकीफलमिति वा घोषातकी इति वा घोषातकीफलमिति वा कृष्णकन्द इति वा वज्रकन्द इति वा, भवेद् एतद्रूपा ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, कृष्णलेश्या खलु इतोऽनिष्टतरिकाचैव यावद् अमनआमतरिकाचैव आस्वादेन प्रज्ञप्ता, नीललेश्यायाः हे गौतम ! जैसे कोई नीम हो (निंबसारेइ वा) नीम का सार हो (निबछल्ली इ वा) नीम की छाल हो (निंबफाणिएइ वा) नीम का क्याथ हो (कुडएइ वा) कुटज वृक्ष हो (कुटगफलएइ वा) कुटज का फल हो (कुडगछल्लीइ वा) कुटज की छाल हो (कुडगफाणिएइ वा) कुटज का क्वाथ हो (कडुगतुंबीइ वा) कटुक तुंवी हो (कडुगतुंबीफलेइ वा) कटुक तुंबी फल (खारतउसी) कडवी ककडी (खारतउसी फलेइ वा) कडया ककडी फल (देवदालीइ वा) रोहिणी (देवदाली. पुप्फेइ वा) रोहिणी का फल (मिगवालुंकीड़ वा) मृगवालुंकी (मियवालंकीफलेइया) मृगयालंकी फल (घोसाडएइ वा) कडवी तोरई (घोसाडिफलेइ या) तोरई-फल (कण्हकंदएइ वा) कृष्णकन्द (वज्जकंदएइ वा) वज्रकंद (भवेएयारूवे) इस प्रकार की होती है ? (गोयमा ! णो इणढे समढे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं (कण्हलेस्सा णं एत्तो अणितरिया चेव जाव अमणामतरिया चेव आसाएग) कृष्णलेश्या इससे भी अधिक अनिष्ट यावत् अमनाम (पण्णत्ता) कही है (नीललेस्साए पुच्छा?) नीललेश्या की पृच्छा ? (गोयमा! से जहानामए) हे भावा-२सथी 3 सी छे ? (गोयमा ! से जहानामए निबेइ वा) गौतम ! म अध Cavडाय (निबसारेइ वा) लिना सा२ /य (निंबछल्लीइ वा) 31नी छ6 डाय (निबफाणिएइ वा) Musiनो ४११थ 31य (कुडएइ वा) १२०४ वृक्ष हाय (कुडगफलएइ वा) दुन डाय (कुडगछल्लीइ वा) २०४नी छ ।य (कुडगफाणिएइ वा) भने। पाथ हाय (कडुगतुंबीइ वा) ४७वी तुमडी (कटुगतुंबीफलेइ वा) ३७वी तुमडीन। ३ (खारतउसी) ४७वी ।(खारतउसीफलेइ वा) 33वी ४।४डी ३(देवदालीइ वा) २ (देवदालीपुप्फेइ वा) ॥ डिएन ०५ (मिगवालुंकीइ वा) भृश पासी (मिगवालंकीफलेइ वा) भृगपासी (घोसाडएइ वा) ४७पी ता२४-(तुरीया) (घोसाडिफलेइ वा) तुरियाना ३८ (कण्णकंदएइ वा) ०६४-६ (वज्जकन्दएइ वा) ५००, ४ (भवेएयारूवे) मे २नी डाय छ ?
(गोयमा ! णो इणद्वे समढे) हे गौतम ! म अथ समय नथी (कण्हलेस्साणं एत्तो अणिद्वतरिया चेव जाय अमणामतरिया चेव आसाएणं) ०२२५॥ येनाथी ५० मधि मनिष्ट यावत् समनाम (पण्णत्ता) ही छ.
श्री प्रशानसूत्र:४