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________________ २१० प्रज्ञापनासत्रे परिणमति, तत् तेनार्थेन एवमुच्यते-कृष्णलेश्या नीललेश्यां यावत् शुक्लले श्यां प्राप्य तदुरू. पतया भूयो भूयः परिणमति, तत् नूनं भदन्त ! नललेश्या कृष्णलेश्यां यावत् शुक्ललेश्या प्राप्य तदरूपतया यावद् भूयो भूयः परिणमति ? हन्त, गौतम ! एवञ्चव, कापोतलेश्या कृष्णलेश्यां नीललेश्यां तेजोलेश्यां पद्मलेश्यां शुक्ललेश्याम्, एवं तेजोलेश्या कृष्णलेश्यां नीललेश्या कापोतलेश्यां पदमलेश्यां शुक्लले श्याम, एवं पदमलेश्या कृष्णलेश्यां नीललेश्यां कापोतलेश्यां तेजोलेश्यां शुक्ललेश्यां प्राप्य यावद भूयो भूयः परिणमति ? हन्त, गौतम ! तच्चेव, तत् नूनं भदन्त ! शुक्ललेश्या कृष्णलेश्यां नीललेश्या कापोतलेश्यां तेजोलेश्या पदमलेश्यां प्राप्य यावद भूयो भूयः परिणमति ? हन्त, गौतम ! तच्चेव ॥ सू० १६॥ परिणमइ) बार-बार परिणत होता है (से तेणटेणं एवं वुच्चइ) इस हेतु से ऐसा कहा जाता है (कण्हलेस्सा नीललेस्सं जाय सुक्कलेस्सं पप्प) कृष्णलेश्या नील लेश्या को यावत् शुक्ललेश्या को प्राप्त करके (ता रूयत्ताए भुज्जो भुज्जो परि णमइ) उसी के रूप में बार-बार परिणत होजाती है। (से) अथ (नूणं) वितर्क (नीललेस्सा किण्हलेस्सं जाव सुक्कलेस्सं पप्प) नीललेश्या कृष्णलेल्या यावत् शुक्ललेश्या को प्राप्त करके (ता रूवत्ताए जाच भुज्जो भुज्जो परिणमइ ?) उसी के रूप में यावत् पुनः पुनः परिणत होती है ? (हंता गायमा ! एवं चेव) हां गौतम ! इसी प्रकार (काउलेस्सा किण्हलेस्सं नीललेस्सं तेउलेम्सं पम्हलेस्सं सुक्कलेस्स) कापोतलेश्या कृष्ण, नील, तेज, पद्म और शुक्ललेश्या को (एवं पम्हलेस्सा किण्ह लेस्सं नीललेस्सं काउलेस्सं तेउलेस्सं सुक्कलेस्सं पंप्प जाच भुज्जो २ परिणमइ ?) इसी प्रकार पदमलेश्या, कृष्ण, नील, कापोत, तेजो और शुक्ललेश्या को प्राप्त होकर यावत बार-बार परिणत होती है ? (हंता गोयमा !) हां गौतम ! (तं चेव) वहीं वक्तव्यता । भुज्जो परिणमइ) पार पा२ परिणत थाय छ (से तेणट्रेणं एवं वुच्चइ) से तुथी मेम हेवाय छ (कण्हलेस्सा नीललेस्सं जाय सुक्कलेस पप्प) २॥ नीतश्याने यापत शुसोश्याने प्राप्त ४शन (ता रूवत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमइ) तेना४ ३५मा वारपार परिणत 45 mय छे. (से) अथ (नूणं) वित: (नीललेस्सा किण्हलेस जाव सुक्कलेस पप्प) नोवेश्य। पसेश्या यावतू शुसवेश्याने प्राप्त ॐशन (ता रूवत्ताए जाव भुज्जो भुज्जो परिणमइ') तना। ३५मां यावत् पुनः पुनः पणित थाय छे ? (हंता गोयमा ! एवं चेव) गौतम ! मेगा प्रहारे (काउलेस्सा किण्हलेस नीललेम्स तेउलेस्स पम्हलेस सुक्कलेस्स) पातोश्या नीस, तेल, पदम मने शुखलेश्याने (एवं पम्हलेस्सा किण्हलेस नीललेस काउलेस्स तेउलेस्स सुक्कलेस्स पप जाव भुज्जो भुज्जो परिणमइ १) से प्रारे ५ मवेश्या, ४०! नाद, पात, ते मन शुसवेश्याने प्राप्त यन यावत् पार पा२ परिणत थाय छ ? (हंता गोयमा ! गौतम ! (तं चेव) ते यतव्यता श्री. प्रशान। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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