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________________ १९८ प्रज्ञापनास्त्रे कियत् क्षेत्रं जानाति पश्यति ? भगवानाइ-'गोयमा !' हे गौतम ! 'बहुतरागं खेत्तं जाणा पासइ जाव विसुद्धतरागं खेतं पासइ' बहुतरं क्षेत्रं जानाति पश्यति यावत्-दृरतरं क्षेत्रं जानाति पश्यति, वितिमिरतरं क्षेत्रं जानाति पश्यति, बिशुद्धतरं क्षेत्रं जानाति पश्यति, गौतमः पृच्छति-'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-काउलेस्से गं नेरइए जाव विसुद्धतरागं खेतं पासइ ?' हे भदन्त ! तत्-अथ केनार्थेन कथं तावद् एवम्-उक्तरीत्या उच्यते-कापोतलेश्यः खलु नैरयिको यावत्-बहुतरं क्षेत्रं जानाति पश्यति, दुरतरं क्षेत्रं जानाति पश्यति, वितिमिरतरं क्षेत्र जानाति पश्यति, विशुद्धतरं क्षेत्रं जानाति इति ? भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'से जहा नामए केइ पुरिसे बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ पव्वयं दुरूहइ दुरूहित्ता दो वि पाए उच्वावइत्ता सव्वो समंता समभिलोएज्जा' तत्-अथ यथानामेति दृष्टान्ते कश्चित् पुरुषो बहुसमरमगीयाद् भूमिभागात् पर्वतमारोहति, आरुह्य द्वावपि पादौ उच्चैः कृत्वा सर्वतः-सर्वदिक्षु, समन्तात्-सर्वदिक्षु समभिलोकेत, 'तए णं से पुरिसे पव्ययगयं धरणितलगयं च पुरिसं वाले नारक की अपेक्षा अवधि द्वारा सभी दिशाओं और विदिशाओं में अव. लोकन करता हुआ कितने क्षेत्र को जानता-देखता है ? । भगवान्-हे गौतम ! बहुतर क्षेत्र को जानता-देखता है, दूरतर क्षेत्र को जानता-देखता है, वितिमिरतर क्षेत्र को जानता-देखता है, विशुद्धतर क्षेत्र को जानता-देखता है। ___ गौतमस्वामी-हे भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि कापोतलेश्या वाला नारक नीललेश्या वाले नारक की अपेक्षा बहुतर, दूरतर, विति मिरतर एवं विशुद्धतर क्षेत्र को जानता-देखता है ? भगवान् हे गौतम ! जैसे कोई पुरुष एकदम समतल भूमिभाग से पर्वत पर आरूढ हो और आरूढ होकर अपने दोनों पांव ऊंचे करके सब दिशाओं और विदिशाओं में अवलोकन करे तो वह पुरुष भूतल पर स्थित और पर्वत पर અપેક્ષાએ અવધિ દ્વારા બધી દિશાઓ અને વિદિશાઓમાં અલેકન કરતો કેટલા ક્ષેત્રને ond-हेथे छ ? श्री भगवान् ! 3 गौतम ! महुत२ क्षेत्रने त-हेने छ, २२ क्षेत्रने त-हेने छ, વિતિમિરતર ક્ષેત્રને જાણે-દેખે છે વિશુદ્ધતર ક્ષેત્રને જાણે-દેખે છે. શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્ ! શા કારણથી એમ કહે છે કે, કાપતલેશ્યાવાળા નારક નીલેશ્યાવાળા નારકની અપેક્ષાઓ, બહેતર, દૂરના વિતિમિરતર, તેમજ વિશુદ્ધતર ક્ષેત્રને नए-हेमे छ? શ્રી ભગવાન-હે ગૌતમ જેમ કે પુરૂષ એકદમ સમતલ ભૂમિભાગથી પર્વત ઉપર આરૂઢ થાય, અને આરૂઢ થઈને પોતાના બંને પગ ઊંચા કરીને બધી દિશાઓ અને વિદિશાઓમાં અવલોકન કરે તે તે પુરૂષ ભૂતલ પર રહેલ અને પર્વત પર રહેલ પુરૂષની श्री प्रशानसूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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