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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ सू० ११ मनुष्यादि सलेश्याल्पबहुत्वनिरूपणम् १२९ विशेषाधिकाः, कृष्णलेश्या विशेषाधिकाः, तेजोलेश्या ज्योतिष्क्यो देव्यः संख्ये यगुणाः, एतेषां खलु भदन्त ! भवनवासिनां यावद् वैमानिकानां देवानाञ्च देवीनाश्च कृष्ण लेश्यानां यावत्शुक्ललेश्यानाश्च कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा बहुका वा तुल्या वा विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोका वैमानिका देवाः शुक्ललेश्याः, पदमलेश्या असंख्येयगुणाः, तेजोलेश्या असंख्येयगुणाः, तेजोलेश्या वैमानिकदेव्यःसंख्येयगुणाः, तेजोलेश्या भवनवासिदेवा असंख्येयगुणाः, तेजोलेश्या भवनवासिदेव्यः संख्येयगुणाः, कापोतलेश्या भवनवासिनोऽसंख्येयगुणाः, नीललेश्या विशेषाधिकाः, कृष्णलेश्या विशेषाधिकाः, कापोतलेश्या भवनवासिन्यः ___(एएमि णं भंते ! भवणवासीणं जाच वेमाणियाणं देवाणय देवीण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण) हे भगवन् ! इन कृष्णलेश्यावाले यावत् शुक्ललेश्या वाले भवनवासी यावत् वैमानिक देवों और देवियों में (कयरे कयरेहितो) कौन किससे अप्पा वा बहुधा वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? (गोयमा ! सव्वत्थोवा बेमाणिया देवा सुक्कलेस्सा) शुक्ल. लेश्यावाले वैमानिक देव सब से कम हैं (पम्हलेस्सा असंखेज्जगुणा) पद्मलेश्या वाले असंख्यातगुणा हैं (तेउलेस्सा असंखेज्जगुणा) तेजोलेश्यावाले असंख्यात. गुणा हैं (तेउलेस्साओ वेमाणियदेवीओ संखेज्जगुणाओ) तेजोलेश्यावाली वैमानिकदेवियां संख्यातगुणी हैं (तेउलेस्सा भवणवासीदेवा असंखेज्जगुणा) तेजोलेश्यावाले भवनवासी देव असंख्यातगुणा हैं (तेउलेस्साओ भवणवासीदेवीओ संखेज्जगुणाओ) तेजोलेश्यावाली भवनवासिनी देवियां संख्यातगुणा हैं (काउलेस्सा भवणवासी असंखेनगुणा) कापोतलेश्यावाले भवनवासी असंख्यातगुणा हैं (नीललेस्सा विसेसाहिया) नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं (कण्हलेस्सा (एएसिणं भंते ! भवणवासीणं जाव वेमाणियाणं देवाण य देवीण य कण्हलेस्साणं जाय सुक्कलेस्साणं) भगवन् ! वेश्यावाणा यावत् शुसवेश्या सनवासी यावत् मानि: हैमने क्योमा (कयरे कयरेहिंतो) rey डनायी (अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा ?) २६५, घ, तुल्य अथवा विशेष छ ? (गोयमा ! सव्वत्थोवा वेमाणिया देवा सुक्कलेस्सा) शुसवेश्या वैमानि याथी छ। छ (पम्हलेस्सा अस खेज्जगुणा) पदभवेश्यावा. असभ्यात छे (तेउलेस्सा अस खेज्जगुणा) तेलवेश्यावाणा मसभ्यात छ (तेउलेस्साओ वेमाणियदेवीओ संखेज्जगुणाओ) तसेश्यावाणी वैमानि हेविया सभ्याती छे (वेउलेस्सा भवणवासी देवा अस खेज्जगुणा) तेलवेश्यावा. सवनवासी ४५ असभ्याता छ (तेउलेस्साओ भवणवासी देवीओ सखेज्जगुणाओ) तसेश्यावाणी नवनवासीनी वियो यातtel छ (काउलेस्सा भवनवासी असंखेज्जगुणा) पातोश्यावा सपनवासी मध्यातमा छ (नीललेस्सा विसेसाहिया) नीसवेश्या विशेषाधि छ (कण्हलेस्सा विसेसाहिया) वेश्यापाणा श्री. प्रशान। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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