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________________ १२४ प्रज्ञापनासत्र देवीनाञ्च कृष्णलेश्यानां यावत् तेजोलेश्यानाञ्च कतराः कतराभ्योऽल्पा वा बहुका वा तुल्या वा विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोका भवनवासिनो देवास्तेजो छेश्याः, भवनपासिन्यस्तेजोलेश्याः संख्येयगुणाः, कापोतलेश्या भवनवासिनोऽसंख्येयगुणाः, नीललेश्या विशेषाधिकाः, कृष्णलेश्या विशेषाधिकाः, कापोतलेश्या भवनवासिन्यो देव्यः संख्येयगुणाः, नीललेश्या विशेषाधिकाः, कृष्णलेश्या विशेषाधिकाः, एवं वानव्यन्तराणां त्रीण्येच गौतम ! इसी प्रकार । (एएसि णं भंते ! भवणवासीणं देवाणं देवीण य कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साणं य) हे भगवन् ! इन कृष्णलेश्या वाले यावत् तेजोलेश्या वाले भवनवासी देवो और देवियों में (कयरे कयरेहितो अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला या विसेसाहिया वा ?) कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? (गोयमा ! सम्वत्थोवा भवणवासी देवा तेउलेस्सा) हे गौतम ! सब से कम भवनवासी देव तेजोलेश्या वाले हैं (भवनवासिणीओ तेउलेस्साओ संखेनगुणाओ) तेजोलेश्या वाली भवनवासिनी देवियां संख्यातगुणी हैं (काउलेस्सा भवणवासि देवा असंखेजगुणा) कापोतलेश्या वाले भवनवासी देव असंख्यातगुणा हैं (नील. लेस्सा विसेसाहिया) नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं (काउलेस्साओ भवणवासिणीओ देवीओ संखेज्जगुणाओ) कापोतलेश्या वाली भवनवासिनी देवियां संख्यातगुणी हैं (नीललेस्साओ विसेसाहियाओ) नीललेश्या चाली भवनयासिनी देवियां विशेषाधिक हैं (कण्हलेस्साओ विसेसाहियाओ) कृष्णलेश्या वाली भवनवासिनी देवियां विशेषाधिक हैं (एवं वाणमंतराणं तिन्नेव अप्पाबहुया) विशेषाधि छ ? (गोयमा! एवं चेय) , गौतम ! मे प्रारे, (एएसि णं भंते ! भवणवासीणं देवाणं देवीण य कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य) : ભગવાન ! આ કૃષ્ણલેશ્યાવાળા યાવત્ તેલેશ્યાવાળા ભવનવાસી દે અને દેવિામાં (कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) आय डीनाथी २५६५, અધિક, તુલ્ય અથવા વિશેષાધિક છે ? (गोयमा ! सव्वत्थोवा भवणवासी देवा तेउलेत्सा) गौतम! मधाथी छ। मन. पासी ४१ वेश्या छ (भवणवासीणीओ तेउलेस्साओ सखेज्जगुणाओ) तेश्यावाणी नवनवासिनी क्या सध्यातरी छ (काउलेस्सा भवणवासी देवा असंखेज्जगुणा) आपातलेश्याया॥ सपनवासी हे। असभ्यात७॥ छ (नीललेस्सा विसेसाहिया) नासोश्याया। विशेषाधि छे (कण्हलेस्सा विसेसाहिया) वेश्यावा विशेषाधि छे (काउलेस्साओ भवणवासिणीओ देवीओ सखेज्जगुणाओ) पातवेश्यावाणी भवनवासिनी हेवीमा सभ्यातली छ. (नीललेस्साओ विसेसाहियाओ) नासवेश्यापाणी मनपासिनी या विशेषाधि४ छ (कण्हलेस्साओ विसेसायिाओ) लेश्यावाणी सपनयासिनी पिया विशेषाधि४ छ (एवं श्री. प्रशान॥ सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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