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श्री प्रज्ञापनासूत्र भा. ४ का विषयानुक्रमणिका अनुक्रमाङ्क विषय
पृष्ठाङ्क सत्तरहवां लेश्यापद प्रथमउद्देशक उद्देशार्थ संग्रह का कथन
१-४ नैरयिकों के समानकर्मादि का निरूपण
५-२२ नैरयिकों के समान क्रियादि का निरूपण
२३-२९ भवनपतिदेवों के समानाहारादि का निरूपणम्
३०-३८ पृथ्वीकायिकादि के समवेदनादि का निरूपण
३९-४६ मनुष्यों के समानाहारादि का निरूपण
४७-५५ वानव्यन्तरदेवों के समानाहारादि का निरूपण
५६-५८ सले श्यजीवों के आहारादि का निरूपण
५९-७३ __ उद्देशक दूसरा लेश्या विशेष का कथन
७४-८८ नैरयिकादिसलेश्य के अल्पबहुत्व का निरूपण
८९-११७ मनुष्यादि के सलेश्य अल्पबहुत्व का कथन
११८-१४३ जीवादि के सलेश्य अल्पबहुत्व का निरूपण
१४४-१५२ उद्देशक तीसरा नैरयिकों के उत्पत्यादि का निरूपण
१५३-१८५ नैरयिकों के अवधि और दर्शनादिज्ञेय क्षेत्रपरिमाण का निरूपण १८६-१९९ लेश्याश्रय ज्ञान का निरूपण
२००-२०४ चौथा उद्देशक उद्देशार्थ संग्रह
२०५लेश्यापरिणमन का निरूपणम्
२०५-२१९ लेश्या के वर्णका निरूपण
२२०-२४४ लेश्या के रसपरिणाम निरूपण
२४५-२६१ लेश्या के गंधपरिणाम का निरूपण
२६२-२६७
श्री. प्रशान। सूत्र:४