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________________ प्रमेयवाधिनी टीका पद १७ तू० १० नैरयिकादि सलेश्याल्पबहुत्वनिरूपणम् ९५ वा ? गौतम ! यथा औधिकानां तिर्यग्योनिकानां नवरं कापोतलेश्या असंख्येगुणाः, संमूच्छिम पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकानां यथा तेजस्कायिकानाम्, गर्भव्युत्क्रान्तिक पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां यथा औधिकानां तिर्यग्योनिकानाम्, नवरं कापोतलेश्याः संख्येयगुणाः, एवं तिर्यग्योनिकीनामपि, एतेषां खलु भदन्त ! संमूच्छिमपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां गर्भव्युत्क्रान्तिक पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानाञ्च कृष्णलेश्याना यावच्छुक्ललेश्यानाञ्च कतरे कतरेभ्योऽल्पा या शुक्ललेश्या वाले पंचेन्द्रियतिथचों में (कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया या तुल्ला वा विसेसाहिया वा?) कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य, या विशेषाधिक हैं ? (गोयमा ! जहा ओहियाणं तिरिक्ख जोणियाणं) हे गौतम ! जैसे औधिक तिर्यचों का (नवरं काउलेस्सा असंखेजगुणा) विशेष यह कि कापोतलेश्या वाले असंख्यातगुणा हैं। (संमुच्छिम पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं) संमूर्छिमपंचेन्द्रियतियचों का (जहा तेउकाइयाणं) जैसे तेजस्कायिकों का (गम्भवतिय पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा ओहियाणं तिरिक्खजोणियाणं) गर्भजपंचेन्द्रियतियचों का जैसे समुच्च तियचों का (नवरं) विशेष (काउलेस्सा संखेजगुणा) कापोतलेश्यावाले संख्यातगुणा हैं (एवं तिरिक्वजोणिणीण वि) इसी प्रकार तिर्यचस्त्रियों का भी। (एएसि णं भंते ! संमुच्छिम पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं) हे भगवन् ! इन संमूछिमपंचेन्द्रियतिर्यगयोनिकों में (गम्भवतिय पंचिंदियतिरिक्खजोणियाण य) और गर्भजपंचेन्द्रियतियचों में (कण्हलेस्साण य जाव सुक्कलेस्साण य) कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या वालों में (कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया चा तुल्ला ભગવન! આ કૃષ્ણલેશ્યાવ ળા પંચેન્દ્રિય તિર્યામાં યાવત શુકલલેક્ષાવાળા પંચેન્દ્રિયतिय यांमा (कयरे कयरे हितो अप्पावा, बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) aty होनाथी भ६५, घ, तुय ५१२ विशेषाधि छ ? (गोअमा ! जहा ओहियाणं तिरिक्खजोणियाणं) 3 गौतम ! 24। भोधित तिय याना (नवरं काउलेस्सा असंखेज्जगुणा) विशेष એ કે કાતિલેશ્યાવાળા અસંખ્યાતગણું છે. (समुच्छिम पंचेदियतिरिक्खजोणियाणं) स भूमि पथन्द्रिय तिय याना (जहा तेउकाइयाणं) २१ तायिनी (गब्भवतिय पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा ओहियाणं तिरिक्खजोणियाण) - पथन्द्रिय तिय याना वा समु२-यय तिय याना (नवरं) विशेष (काउलेस्सा संखेज्जगुणा) पातोश्यापार सध्याता छ (एवं तिरिक्खजोणिणीणं વિ) એજ પ્રકારે તિર્યચયેિના પણ _ (एएसि णं भंते ! समुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं) : सन् ! | सभूमि पथन्द्रिय तिय योनिमा (गब्भवतिय पंचिंदियतिरिक्खजोणियाण य) मने पल fru तिय याम:(काहलेस्साण य जाव सुकलेसाण य) अश्या यावत् रसेश्यवाणामा श्री प्रशानसूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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