SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 933
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १६ सू० ७ सिद्धक्षेत्रोपपातादिनिरूपणम् तत् का सा बन्धनविमोचनगतिः ? बन्धनविमोचनगतिः-यत् खलु आम्राणां वा आम्रातकानां वा मातुलुङ्गानां वा, बिल्वाना वा कविठानों का पनसानां वा दाडिमानां वा पारेवतानां वा अक्षोटानां वा चाराणां वा बदराणां वा तिन्दुकानां वा पक्वानां पर्यागतानां बन्धनाद् विप्रमुक्तानां निर्याघातेन अधो विश्रसया गतिः प्रवर्तते, सा एषा बन्धनविमोचनगतिः, सा एषा विहायोगतिः, प्रज्ञापनायां भगवत्यां प्रयोगपदं समाप्तम् ॥ १६ ॥ मू० ७॥ अथवा जल में (कार्य) शरीर को (उन्विहिया) दूसरे के साथ जोडकर (गच्छति) गमन करता है (से तं पंकगती) वह पंकगति है। (से किं तं बंधणविमोयणगती २) बंधनविमोचनगति क्या है ? (जं गं अंबा णवा) जो कि आमों का (अंबाडगाण वा) अथवा अम्लाटकों का (माउलुगाण वा) अथवा विजौरों का (बिल्लाण वा) अथवा विल्वों का (कविद्वायाण ) या कवीठों का ( भट्टाण वा) या भद्रनामकफलका (फणसाण वा) या पनसों कटहलों का (दालिमाण वा) या दाडिमों का (पारेवताणं वा) अथवा पारावतों का (अक्खोलाण या) या अखरोहों का (चाराण वा) या चारों का (वोराण वा) या बोरों का (तिदयाण वा) या तेदाओं का (पक्काणं) पकों का (परियागयाणं) तैयार हुओं का (बंधणाओ विप्पमुक्काणं) बन्धन से छूटे हुओं का (निव्वाघाते णं) रुकावट न होने से (अधे वीससाए गती पवत्तइ) नीचे स्वभाव से हो गति होती है (से तं बंधणविमोयणगती) वह बन्धन विमोचनगति है (से तं विहा योगति वह विहायोगति है। प्रयोगपद समाप्त (कार्य) शरीरने (उविहिया) मीनी साथे डीन (गच्छति) गमन ४२ छ (सेत पंक गती) ते ५४ति छ. (से किं तं बंधणविमोयणगती २) अन्धन विभायन गति शुछ १ (जं गं अंबाण वा) ने शयाना (अंबाडगाण वा) 424 मसाट (माउलुंग.ण वा) अथवा मीराना (बिल्लाण वा) 424n Cheiमोना (कविद्वाण वा) ॥२ विहाना (भट्टाण वा) म०२ भद्र नाम४ ५८ ? (फणसाण वा) मगर ३शुसेना (दालिमाणवा) 4441 sभाना (पारेवताणं वा) अथपा पारापताना (अक्खोलाण वा) Aथा अमराटीना (चाराण वा) मथ। याराना (बोराण वा) म॥२ मशिना (तिदुयाण वा) १२ तेसोना (पक्काणं) पासना (परियागया णं) तैयार थयेसाना (बंधणाओ विप्पमुक्काणं) मन्थी छ्टेसामाना (निबाघातेणं) ३४१५८ न पाथी (अधे वीससाए गती पवत्तइ) नाये स्माथी गति थाय छ (सेतं बंधन विमोयणगती) ते पन्धन विभा-यन गति छ (सेत विहायोगती) मा વિહાયે ગતિ છે પ્રાગ પદ સમાસ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy