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________________ ___प्रज्ञापनासत्रे युवराजं वा ईश्वरं वा तलवरं वा माडम्बिकं वा कौटुम्बिकं वा इ यं वा, श्रेष्ठिनं वा सेनापति वा, सार्थवाहं वा; उपसम्पद्य गच्छति, सा एषा उपसंपद्यमानगतिः ३, तत् का सा अनुसंपद्यमानगतिः ? अनुपसंपद्यमानगति यत् खलु एतेपाञ्चैव अन्योन्यम् अनुपपद्य गच्छति सा एषा अनुपमम्पद्यमानगतिः४, तत् का सा पुद्गलग तः ? पुद्गलगति यत् खलु परमाणुपुद्गलानां यायद अनन्तप्रदेशिकानां स्कन्धानां गतिः प्रवर्तते सा एषा पुद्गलगतिः ५, तत् का सा मण्डुकगतिः? हुए इन्हीं परमाणु आदि की गति होती है, वह अस्पृशद्गति है। __(से किं तं उयसंपन्जमाणगती ?) उपसंपद्यमानगति किसे कहते हैं ? (जं णं रायं वा) राजा को (जुवरायं वा) युवराज को (ईसरं वा) ऐश्वर्यशाली को (तल. वरं वा) तलवर-जिसे राजा की ओर से पट्टामिला हो उसको (माडंबियं) मंडल के अधिपति को (कोडुंबियं) कौटुम्बिक को (इभं वा) सेठ को (सेणावति वा) सेनापति को (सत्यवाहं वा) अथवा सार्थवाह को (उपसंपज्जित्ताणं) आश्रय करके (गच्छति) गमन करता है (से तं उवसंपन्जमाणगती) वह उपसंपद्यमानगति है ! (से किं तं अणुवसंपन्जमाणगतो ?२) अनुपसम्पद्यमानगति किसे कहते हैं ? (जं णं एतेसिं चेव) जो इन्ही पूर्वाक्त को (अण्णमण्ण) आपस में (अणुवसंपज्जित्ताणं) आश्रय न करके (गच्छद) गमन करता है (से तं अणुवसंपन्जमाणगती) वह अनुपसंपद्यमान गति है। (सं किंतं पोग्गलगती २) पुगलगति किसे कहते हैं ? (जंणं परमाणुपोग्गलाणं) जो परमाणुपुद्गलों की (जाव अणंतपएसियाणं खंधाणं) यावत् अनन्तमदेशी स्कंधों की (गती पवत्तती) गति होती है (से तं पोग्गलगतो) वह पुद्गलगति कहलाती है। (से किं तं मंडूयगती ? २) मंडूकगति किसे कहते हैं ? (जं णं मंडूओ फिडित्ता ગતિ હેય છે. તે અસ્પૃશદુ ગતિ છે (से किं तं उवसंपज्जमाणगती १) 5५सपमानाति जाने छ ? (जेणं रायं वा) ने (जुवराय या) युवराने (ईसरं वो) मेश्वर्यशालीन (तलवरं वा) तस१२-रेन सननी त२३थी ५। भक्ष्ये। डाय ते(मांडवियं) भ७५ना अधिपतिने (कोलंबियं) डौटुमने (इन्भं वा) शहने (सेणाबति' वा) सेनापतिने (सत्यवाहं वा) 24241 सा पाइने (उपसंपज्जित्ताण) माश्रय शत (गच्छति) मन ४२ छ (से तं उपसंपज्जमाणगती) ते उपसंयमानाति छ (से कि तं अणुवसंपज्जमाणगती) मनु५स पयमान गति होने ४९ छ ? (जं णं एए सिचेव) २ ते पूरितने (अण्ण मण्णं) म४३॥ २५४२ (अणुवसंपज्जित्ताणं) माश्रय न ४शन (गच्छइ) मन ४२ छ (से तं अणुवसंपज्जमाणगती) ते अनुपस ५मान गति छ (से किं तं पाग्गलगती ?) पुगत गति औने ४४ छ ? (जं ण परमाणु गेग्गलाणं) में ५२मा पुगतानी (जाव अणंतपएसियाण खंधाणं) यावत् अनन्त प्रशी २४. धोनी (गती पपत्तती) गति हाय छ (से तं पोग्गलगती) ते पुसत गति उपाय छ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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