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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १६ सू० ५ गतिप्रपातनिरूपणम् ८८९ भदन्त ! सत्यमनः प्रयोगगति यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगगतिः ? गौतम ! जीवाः सर्वेऽपि तावद् भवेयुः सत्यमनः प्रयोगगतयोऽपि, एवं तचैव पूर्ववणितं भणितव्यम्, भङ्गास्तच पायद् वैमानिकानाम्, तत् एषा प्रयोगगतिः १, तत् का सा ततगतिः ? यः खलु यं ग्राम वा यावत् सनिवेशं वा संप्रस्थितः असंप्राप्तः अन्तरापथे वर्तते, तत् सा ततगतिः २, अथ का ता बन्धनच्छेदनगतिः ? बन्धनच्छेदनगतिः-जीयो या शरीरात्, शरीरं वा जीवात्, तत् सा बन्य. गगती) सत्यमनप्रयोगगति (एवं) इस प्रकार (उयउज्जिऊण) उपयोग करके (जस्स जतिविहा) जिसकी जित ने प्रकार की (तस्स ततिविहा) उसकी उसने प्रकार की (भाणियव्वा) कहनी चाहिए (जाय) वेमाणियाणं) यावत् वैमानिकों तक। (जीवाणं भंते ! सच्चमणप्पओगगती जाय कम्मगसरीरकायप्पओगगती) हे भगवन ! जीवों की सत्यमनपयोगगति यायतू कार्मणशरीरकायप्रयोगगति (काविहा पण्णत्ता ?) कितनी तरह की कही है ? (गोयमा !) हे गौतम ! (जीवा सव्वे चिताच होज्ज सच्चमणप्पओगगती वि) जीव सभी होते हैं सत्यमनप्रयोग गति वाले भी (एवं तं चेय) इस प्रकार यही (पुत्ववणितं भाणियट्य) पूर्ववर्णित कहना चाहिए (भंगा तहेव) भंग उसी प्रकार (जाव माणियाणं) यावत् वैमानिकों के (से तं पओगगती) यह प्रयोगगति हुई। ___ (से किं तं ततगती ?) ततगति क्या है ? (ततगती) ततगति (जेणं) जिसके द्वारा (गामं वा जाव सन्निवेसं वा संपट्टिते) ग्राम यावत् सनिवेश को रवाना हुआ (असंपत्ते) पहुंचा नहीं (अंतरापहे) बीच रास्ते में (वति) वर्त्त रहा है (से तं ततगती) वह ततगती है। ___ (से किं तं बंधण छेदणगती ?) बन्धनछेदलगति क्या है ? (जीयो या सरीराओ) से शत (उवउज्जिऊण) प्रयोग जरीन (जस्स जति विहा) २ २८ रन (तस्स तति विहा) तेमनी तटसा प्रश्न (भाणियब्वा) ४डवी (जाब वेमाणियाणं) यापत् વૈમાનિકે સુધી ___ (जीयाणं भंते ! सच्चमणप्पओगगती जाव कम्मसरीरकायप्पओगगती) हे भगवन् ! वानी सत्यमान प्रयोगपति यावत् शरी२४।यप्रयोगात (कइविहा पण्णता ?) है। प्रा२नी ४ी छे ? (गोयमा !) 3 गौतम ! (जीवाः सव्वे वि ताव होज्ज सच्च मगप्प ओगगती वि) ७१ डाय छ, सत्यभन प्रयोगतिवाण ५५ (एवं तं चेव) से ५४२ ते४ (पुव्ववण्णित भाणियव्वं) पूर्व पति ४ (भंगा तहेव) मते ४ारे (जाव वेमाणियाणं) यावत् वैमानिडर (से तं पओगगती) मा प्रयोगमति (से किं तं ततगति ?) तत गति शुछ १ (ततगती) तताती (जे गं) रेम। (गामं या जाव संनिवेसं वा संपट्टिते) याम त२३ यावत सन्निवेशनी त२३ २थाना थया (असंपत्ते) पण त्यां पडे-या नही (अंतरापहे) च्ये २२तामा (वट्टति) २४ छ. (सेतं ततगती) ते ततति छ। प्र० ११२ श्री प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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