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प्रमेयबोधिनी टोका पद ९ सू. २ योनिपदनिरूपणम् संमूच्छिमपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां संमूच्छिममनुष्याणाश्च एवञ्चैव, गर्भव्युत्क्रान्तिक पञ्च. न्द्रियतिर्यग्योनिकानां, गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याणाश्च नो सचित्ता, नो अचित्ता, मिथिता योनिः, वानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकरनां यथा असुरकुमाराणाम् , एतेषां खलु भदन्त ! जीवानां सचित्तयोनीनाम् अचित्तयोनीनाम् मिश्रयोनिकानाम् अयोनिकानाञ्च कतरे कतरेभ्योऽल्पावा, बहुका वा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोकाः जीवा मिश्रयोनिकाः, अचित्तयोनिका असंख्येयगुणाः, अयोनिका अनन्तगुणाः, सचित्तयोनिका अनन्तगुणाः ॥ सू०२॥ है (एवं जाव चउरिंदियाणं) इसी प्रकार यावतू चौइन्द्रियों तक (संमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणियो णं) संमूछिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की (संमुच्छिममणुस्साण य एवं चेव) और संमूर्छिम मनुष्यों की भी इसी प्रकार (गम्भवक्कंतिय पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं) गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यचों की (गम्भवक्कंतिय मणुस्साण य (और गर्भज मनुष्यों की (नो सचित्ता, नो अचित्ता, मीसिया जोणी) सचित्त नहीं, अचित्त नहीं, मिश्रयोनि होती है (वाणमंतर जोइसिय वेमाणिया णं जहा असुरकुमाराणं) वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों की जैसे असुरकुमारों की। __ (एएसि णं भंते ! जीवाणं सचित्तजोणीणं, अचित्त जोणीणं, मीसजोणीणं अजोणीण य कयरे कयरेहितो अप्पा चा, बहुया चा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) भगवान ! इन सचित्तयोनिक, अचित्तपोनिक और मिश्रयोनिक तथा अयोनिकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? (गोयमा ! सम्वत्थोवा जीवा मीसजोणिया) गौतम ! सब से कम मिश्रयोनिक जीव हैं (अचित्तजोणिया असंखेजगुणा) अचित्तयोनिक असंख्यातगुणा हैं (अजोणिया धन्द्रिय सुधी (समुच्छिम पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं) स भूमि पन्द्रिय तिय यानी (संमुच्छिममणुस्सणय एवं चेव) मने संभूछभ मनुष्यानी ५ से प्रारे (गब्भवकतियपंकिंदियतिरिक्खजोणियाणं) - पश्यन्द्रिय तिय यानी (गब्भवकं तियमणुस्साण य) भने ४ मनुष्योनी (नो सचित्ता. नो अचित्ता, मीसिया जोणी) सायत्त नही मयित्त नही, भिश्रयानि डाय छे (वाणमंतरजोइसियवेमाणियाणं असुरकुमाराणं) वानव्यन्तरल्या. તિષ્ક અને વૈમાનિકની જેમ અસુરકુમારની નિના સંબંધમાં પણ સમજવું. _(एएसिणं भंते ! जीवाणं सचित्तजोणीणं अचित्तजोणीणं, मीसजोणीण य अजोणीण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?) हे भगवन् ! । सथित નિક, અચિત્તનિક અને મિત્રોનિક તથા અનિકેમાં કેણુ કેનાથી અ૯પ, ઘણા तुल्य मथ। विशेषाधिन छ ? (गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा मीसजोणिया,) हे गौतम ! अधाथी मेछ। भि नि अछे (अचित्तजोणिया असंखेज्जगुणा) मायत्त योनि
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩