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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १६ सू० ३ जीवप्रयोगनिरूपणम् अथवा एकश्च कार्मणशरीरकायप्रयोगी च १, अथवा एके च कार्मणशरीरकायप्रयोगिणश्च २, एवम् असुरकुमरा अपि, यावत् स्तनितकुमाराः, पृथिवीकायिकाः खलु भदन्त ! किम् औदारिकशरीरकायप्रयोगिणः, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगिणः, कार्मणशरीरकायप्रयोगिणः ? गौतम ! पृथिवीकायिकाः औदारिकशरीरकायप्रयोगिणोऽपि, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगिणोऽपि, कार्मणशरीरकायप्रयोगिणोऽपि, एवं यावद वनस्पतिकायिकाः, नवरं वायुकायिकाः सत्यमनप्रयोगी भी (जाव वेउब्वियमीसासरीरकायप्पओगी वि) यावत् वैक्रियमिश्रशरीर कायप्रयोगी भी (अहयेगे य कम्मासरीरकायप्पओगी य) अथवा कोई एक कार्मणशरीरकायप्रयोगी (अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य) अथवा कोई अनेक कार्मणशरीरकायप्रयोगी भी। ___(एवं असुरकुमारा वि जाय थणियकुमारा णं) इसी प्रकार असुरकुमार भी यावत् स्तनितकुमार ___ (पुढविकाइया णं भंते ! किं ओरालियसरीरकायप्पओगी ओरालियमोसा. सरीरकायप्पओगी, कम्मासरीरकायप्पओगी ?) हे भगवन् । पृथ्वीकायिक क्या औदारिकशरीरकायप्रयोगी हैं, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगो हैं, कार्मणशरीरकायप्रयोगी हैं ? (गोयमा!) हे गौतम ! (पुढविकाइया) पृथ्वीकायिक (ओरालियसरीरकायप्पओगी यि, ओरालियमीससरीरकायप्पओगी वि, कम्मासरीरकाय प्पओगी वि) औदारिकशरीरकायप्रयोगी भी, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगी भी, कार्मणशरीरकायप्रयोगी भी (एवं जाव वणप्फइकाइयाणं) इस प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक भी (णवरं) विशेष (वाउकइया वेउव्वियसरीरकायप्पताव) ना२४ मा (होज्जा) उय (सच्चमणप्पओगी वि) सत्य भन प्रयोगी ५ए (जाव वेउव्वियमीसासरीरकायप्पओगी वि) यावत् पैठिय CHAN२४।५ प्रयोगी ५५ (अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पआगी य) 24241 315 मे भए २०२१२४४५ प्रयोजी ५५ (अहवेगे य कम्मासरीरकायप्प भोगिणोय) 4441 3 भने शरी२४५ प्रयागी ५५५ सय छे. (एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमाराणं) मे०४ प्रारे असु२५मार पण यात स्तानતકુમાર પર્યન્ત જાણવું. ___ (पुढविकाइयाणं भंते । कि ओरालियसरीरकायप्प भोगी ओरालियमीसासरीरकायप्पओगी कम्मासरीरकायप्पओगी ?) हे मान्! पृथ्वीय शुसोहा२ि४ शरी२४।यप्रयोगा छ ? मौ४ि मिश्रशरी२४।यप्रयोगी छ, है आभएरीय प्रयोगी छ ? (गोयमा!) गौतम! (पुढ विकाइया) पृथ्वीय (ओरालियसरीरकोयप्पओगी वि, ओरालियमीससरीर. कायप्पओगी वि, कम्मासरीरकायप्पओगी वि) मोहा२ि४ २२२२४४५ प्रयोगी ५० छ मोहरिण मिश्र शरी२४ाय प्रयोगी, भए शरी२४।५ प्रयी ५९ छ. (एवं जाव वणप्फइकाईयाणं) मेर ४२ यावत् वनस्पतिथि: ५५ (णवरं) विशेष (चाउकाइया वेउव्यियसरीरकायप्पओगी શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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