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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १५ सू० ११ भावेन्द्रियस्वरूपनिरूपणम् ___७९५ दण्डको भणितस्तथा भावेन्द्रियेष्वपि पृथक्त्वेन दण्डको भणितव्यः, नवरं वनस्पतिकायिकानां बद्धानि अनन्तानि, एकैकस्य खलु भदन्त ! नैरयिकस्य नैरयिकत्वे कियन्ति भावेन्द्रियाणि अतीतानि ? गौतम ! अनन्तानि, बद्धानि ? पञ्च, पुरस्कृतानि कस्यापि सन्ति कस्यपि न सन्ति, यस्य सन्ति, पञ्च वा दश वा, पञ्चदश वा, संख्येयानि वा, असंख्येयानि वा, अनन्तानि वा, एवम् असुरकुमाराणां यावत् स्तनितकुमाराणाम्, नवरं बद्धानि न सन्ति, पृथिवीकायिकत्वे यावद् द्वीन्द्रित्वे या द्रव्येन्द्रियाणि, त्रीन्द्रियत्वे तथैव, नवरं पुरस्कृतानि त्रीणि वा, षड क्त्व-बहुवचन से (दंडओ भणिओ) दंडक कहा है (तहा) इसी प्रकार (भाविदि. एसु वि) भावेन्द्रियों में भी (पोहण दंडओ भाणियम्वो) बहुवचन से दंडक कहना चाहिए (नवरं) विशेष (वणस्सइकाइयाणं बद्धेल्लगा अणंता) वनस्पतिकायिकों की बद्ध अनन्त हैं। ___ (एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स) हे भगवन् ! एक-एक नारक की (नेरइत्ते) नारकपने में (केवइया भाबिंदिया अतीता) कितनी भावेन्द्रियां अतीत हैं ? (गोयमा ! अणंता) हे गौतम! अनन्त (बद्धेल्लगा ?) बद्ध ? (पंच) पांच (पुरेक्खडा कस्सवि अस्थि, कस्सवि नस्थि) पुरस्कृत किसी की हैं, किसी को नहीं (जस्स आत्थि पंच वा, दस वा, पण्णरस संखेज्जा वा, असंखेज्जा या, अणंता वा) जिसकी हैं, उसकी पांच, दश, पंन्द्रह, संख्यात असंख्यात अथवा अनन्त हैं (एवं असुरकुमाराणं जाय थणियकुमाराणं) इसी प्रकार असुरकुमारों की यावत् स्तनित मारों की (नवरं बद्धेल्लगा नत्थि) विशेष-बद्ध नहीं हैं (पुढविकाइयत्त जाव वेइंदि. यत्ते जहा दधिदिया) पृथ्वीकायिकपने यावत् द्वीन्द्रियपने में जैसे द्रव्येन्द्रियां कही है (तेइंदियत्ते तहेच) त्रीन्द्रियपने इसी प्रकार (नवरं) बिशेष (पुरेक्खडा) भावी मे ४ारे रेभ (दविदिएसु) द्रव्येन्द्रियोमा (पोहत्तेणं) पृथत्य-महुपयनी (दंडओ भणिओ) ४४ हा छ (तहा) मे प्रारे (भाविदिएस) सावन्द्रियामा ५५५ (पोहतेणं दंडओ भाणियव्वो) हुयमयी ६४ ४३॥ नये (नवरं) विशेष (वणस्सइकाइयाणं बद्धेल्लगा अणंता) पनस्पतिविहीनी म मनन्त छ । (एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स) भगवन् ! ४ ४ न॥२४जी (नेरइयत्ते) ना२४५४vi (केवइया भाविदिया अतीता) 32ी लावन्द्रयो मतीत छ ? (गोयमा ! अणंता) 3 गौतम! सनन्त (बघेल्लगा) मई (पंच) पांय (पुरेक्खडा कस्स वि अत्थि, कस्स वि नत्थि) पुरस्कृत उनी छ. उनी नथी (जस्स अस्थि, पंच वा दस वा पण्णरम वा संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अगंता वो) नी छ तेनी पाय, ४श, ५४२, सध्यात, असभ्यात, A241 अनन्त छ (एवं जाव असुरकुमाराणं जाव थणियकुमाराणं) मे २ असुमारानी तेभ स्तनित भानी (नवरं बद्धेल्लगा नत्थि) विशेष-मर नयी (पुढविकाइयत्ते जाव बेइंदियत्ते जहा दबिदिए) १४॥४ि५ो यावत् दीन्द्रिय पणे रेपी द्रव्येन्द्रियो (तेइंदियत्ते तहेव) जीन्द्रिय શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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