SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 787
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १५ सु. १० इन्द्रियादिनिरूपणम् ७७१ मनुष्यस्य सन्ति तस्य अष्टौ द्रव्येन्द्रियाणि पुरस्कृतानि सन्ति, 'वाणमंतर जोइसिए जहा नेरइए' वानव्यन्तरज्योतिषको यथा नैरयिकः प्रतिपादितस्तथा प्रतिपत्तव्यः, 'सोहम्मगदेवे वि जहा नेरइए' सौधर्मदेवोऽपि यथा नैरयिकः प्रतिपादितस्तथा प्रतिपत्तव्यः, किन्तु - 'णवरं सोहम्मगदेवस्स विजयवेजयंत जयंता पराजियते केवइया अतीता ?' नवरम् - विशेषस्तु - सौधर्मदेवस्य विजयवैजयन्तजयन्तापराजितत्वे यिन्ति अतीतानि द्रव्येन्द्रियाणि सन्ति ? 'गोयमा ! कस्सइ अस्थि, कस्सइ णत्थि ' हे गौतम ! कस्यचिद् सौधर्मदेवस्य अतीतानि द्रव्येन्द्रियाणि सन्ति, कस्यचिन्न सन्ति 'जस्स अस्थि अट्ठ' यस्य सन्ति तस्य अष्टौ द्रव्येन्द्रियाणि अतीतानि सन्ति, 'केवइया बद्धेललगा' कियन्ति बद्धानि सन्ति ? ' णत्थि' बद्धानि द्रव्येन्द्रियाणि न सन्ति, सौधर्मदेवत्वे वर्तमानस्य विजयादित्वे वर्तमानत्वासंभवात् 'केवइया पुरेक्खडा ?' कोई उत्पन्न होता है, कोई नहीं भी उत्पन्न होता, जो नहीं उत्पन्न होने वाला है, उस मनुष्य की सर्वार्थसिद्ध देवपने भावी इन्द्रियां नहीं हैं, और जो उत्पन्न होने वाला है, उसकी भावी द्रव्येन्द्रियां आठ होती हैं, क्योंकि सर्वार्थसिद्ध विमान में एक ही वार जन्म लिया जाता है । वानव्यन्तर देव तथा ज्योतिष्कों की वक्तव्यता नारक के समान समझनी चाहिए | सौधर्मक देवका भी कथन नारक के सदृश ही है । विशेष यह हैसौधर्मक देवकी विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवपने अतीत द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ? भगवान् ने उत्तर दिया- हे गौतम! किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती । जिसकी होती हैं, उसकी आठ होती हैं । गौतमस्वामी - हे भगवन् ! बद्ध कितनी हैं ? भगवान् - हे गौतम! बद्ध द्रव्येन्द्रियां नहीं होती, क्योंकि जो सौधर्मदेवलोक का देव है, वह विजय आदि विमानों का देव उसी समय नहीं हो सकता । પણ થતા. જે નથી ઉત્પન્ન થનારા, તે મનુષ્યની સર્વાં`સિદ્ધ દેવપણે ભાવી ઇન્દ્રિયા નથી. અને જે ઉત્પન્ન થનારા છે, તેમની ભાવી દ્રવ્યેન્દ્રિય આઠ હાય છે, કેમકે સર્વાં સિદ્ધ વિમાનમાં એક જ વાર જન્મ લેવાય છે. વાનન્યન્તર દેવ તથા ચૈાતિષ્કની વક્તવ્યતા નારકની સમાન સમજવી જોઈ એ. સૌધર્માંક દેવનુ પણ કયન નારકના સશ જ છે. વિશેષ એ છે કે સૌધર્માંક દેવની વિજય, વૈજયન્ત; જયન્ત, અને અપરાજિત દેવપણે અતીત દ્રવ્યેન્દ્રિયે કેટલી છે ? श्री भगवान् - उत्तर आये छे-हे गौतम! श्रेधनी होय छे, श्रेधनी नथी होती, भेनी होय छे, तेनी माई होय है, श्री गौतमस्वामी-डे लगवन् ! मद्ध डेटसी छे ? શ્રી ભગવાન્ હે ગૌતમ ! ખ દ્રવ્યેન્દ્રિયા નથી હોતી, કેમકે જે સૌધમ દેવલાકના દેવ છે, તે વિજય માઢિ ત્રિમાનાના દેવ એજ સમયે નથી થઈ શકતા, श्री प्रज्ञापना सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy