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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद १५ सू० ९ इन्द्रियावायादिनिरूपणम् चतुरिन्द्रियाणामपि, नवरम् इन्द्रियपरिवृद्धिः कर्तव्याः, चतुरिन्द्रियाणां व्यञ्जनावग्रहः त्रिविधः प्रज्ञप्तः, अर्थावग्रहश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, शेषाणां यथा नैरयिकाणां यावद वैमानिकाम् ॥सू ० ९॥ टीका-अथेन्द्रियैरवग्रहणरूपपरिच्छेदसामान्यस्य प्ररूपणानन्तरम्, अष्टमं द्वारं वस्तु निश्चयरूपम् अवायादि विशेषविषयान् प्ररूपयितुमाह-'कइविहे गं भंते ! इंदियअवाए पण्णत्ते ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कतिविधः खलु इन्द्रियावायः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह'गोयमा !' हे गौतम ! 'पंचविहे इंदिय अवाए पण्णत्ते'-पञ्चविधस्तावद् इन्द्रियावायः प्रज्ञप्तः, तत्रावग्रहात्मक सामान्यज्ञानेनावगृहीतस्य ईहात्मकज्ञानेन ईहितस्यार्थस्य निर्णयरूपोऽध्यइंदियपरिवुड्डी कायव्वा) विशेष यह कि इन्द्रियों की वृद्धि करनी चाहिए (चउरिंदियाणं वंजणोग्गहे तिविहे पण्णत्ते) चौइन्द्रियों का व्यंजनावग्रह तीन प्रकार का कहा है (अथोग्गहे चउविहे पण्णत्ते) अर्थावग्रह चार प्रकार का कहा है (सेसाणं जहा नेरइयाणं जाव वेमाणियाण) शेष जैसे नारकों का यावत् वैमानिकों का । आठवां द्वार टीकार्थ-इन्द्रियों द्वारा होने वाले अवग्रहण रूप सामान्य परिच्छेद की प्ररूपणा करने के पश्चात् यहां निश्चय रूप अवाय आदि विशेष परिच्छेद की प्ररूपणा करने के लिए कहते हैं___ गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-इन्द्रियावाय अर्थात् इन्द्रियों के द्वारा अवाय कितने प्रकार का कहा है ? भगवान उत्तर देते हैं-इन्द्रियावाय पांच प्रकार का कहा है। ज्ञानोपयोग में सर्वप्रथम अवग्रह ज्ञान होता है। अवग्रहज्ञान अपर सामान्य को विषय करता है, तत्पश्चात् ईहाज्ञान की उत्पत्ति होती है जिसके प्रारना ४ा छ (एवं ते इंदियाण, चउर दियाण वि) मेरी हारे त्रीन्द्रिय नायतुरिन्द्रियना पर (णवरं इंदिय परिवुड्ढी कायवा) विशेष से छे धन्द्रियानी वृद्धि ४२वी मध्ये (चउरिदियाणं वंजणोग्गहे तिविहे पण्णत्ते) या२ धन्द्रियाना व्यावह प्रा२ना ४ह्य! छ (अत्थोग्गहे चउविहे पण्णत्ते) सविड या२ ४२॥ ४ा छे (सेसाणं जहा नेरयाणं जाव वेमाणियाणं) शेष 4 नाही ना यावत् वैमानिडाना આઠમું દ્વાર ટીકાથ-ઈન્દ્રિ દ્વારા થનારા અવગ્રહણ રૂપ સામાન્ય પરિચ્છેદની પ્રરૂપણ કર્યા પછી અહીં નિશ્ચય રૂપ અવાય આદિ વિશેષ પરિચ્છેદની પ્રરૂપણ કરવાને માટે કહે છે શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે--હે ભગવન્ ! ઈન્દ્રિયાવાય અર્થાત્ ઈન્દ્રિયેના દ્વારા થનાર અવાય કેટલા પ્રકારના કહ્યા છે? શ્રી ભગવાન ઉત્તર આપે છે–હે ગૌતમ ! ઈન્દ્રિયાવાય પાંચ પ્રકારના કહ્યા છે. જ્ઞાને પગમાં સર્વ પ્રથમ અવગ્રહજ્ઞાન થાય છે. અવગ્રહજ્ઞાન અપર સામાન્યને વિષય કરે છે, તત્પશ્ચાત્ ઈહાજ્ઞાનની ઉત્પત્તિ થાય છે, જેના દ્વારા વધુના વિશેષ ધર્મને જાણવાની આકાંક્ષા श्री प्रशान॥ सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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