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प्रज्ञापनासूत्रे कानाम्, नवरं यस्य यावन्ति इन्द्रियाणि सन्ति ७, कतिविधा खलु भदन्त ! ईहा प्रज्ञप्ता ? गौतम ! पञ्चविधा ईहा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-श्री न्द्रियेहा, यावत् स्पर्शनेन्द्रियेहा, एवं यावद वैमानिकानाम, नवरं यस्य यावन्ति इन्द्रियाणि ८, कतिविधः खलु भदन्त ! अवग्रहः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! द्विविधः अवग्रहः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- विग्रहश्च, व्यञ्जनाक्ग्रहश्च, व्यञ्जनावग्रहः खलु
अवायादिवक्तव्यता शब्दार्थ-(कइविहे गं भंते ! इंदिय अवाए पण्णत्त ?) हे भगवन् ! इन्द्रिअपाय कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! पंचविहे इंदियावाए पणत्ते) हे गौतम ! इन्द्रियावाय पांच प्रकार का कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (सोइं. दिय अवाए जाव फासिदिय अवाए) श्रोचेन्द्रिय-अपाय यावत् स्पर्शनेन्द्रियअपाय (एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाण) इसी प्रकार नारकों यावत वैमानिकों का (णवरं) विशेष (जस्स जइ इंदिया अत्थि) जिसकी जितनी इन्द्रियां हैं। ___ (कइविहा णं भंते ! ईहा पण्णत्ता) हे भगवन् ! ईहा कितने प्रकार की कही ? (गोयमा ! पंचदिहा ईहा पण्णत्ता) हे गौतम ! पांच प्रकार की ईहा कही है (तं जहा) वह इस प्रकार (सोइंदिय ईहा जाव फासिदिय ईहा) श्रोत्रेन्द्रिय ईहा यावत् स्पर्शनेन्द्रिय-ईहा (एवं जाव वेमाणियाण) इसी प्रकार यावत् थैमानिकों तक (वरं जस्स जइ इंदिया) विशेष यह कि जिसकी जितनी इन्द्रियां
(कइविहे गं भंते ! उग्गहे पण्णत्ते) हे भगवन् ! अवग्रह कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! दुविहे उग्गहे पण्णत्ते) हे गौतम ! दो प्रकार का अवग्रह कहा है (तं जहा अत्थोग्गहे य वंजगोग्गहे य) अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह (वं
અવાયાદિ વક્તવ્યતા साथ-(कइविहे णं भंते ! इंदियअवाए पण्णत्ते ?) 3 सन् ! न्द्रिय- पाया प्रहारना ॥ छ (गोयमा ! पंचविहे इंदियअवाए पण्णत्ते) गौतम ! Uन्द्रिय अवाय पाय ५४२ना ह्या छ (तं जहा) ते ! ॥२ (सोइंदिय अवाए जाव फ.सिदिय अवाए) श्रेत्रन्द्रिय अपाय यावत् २५शनन्द्रिय-मवाय (एवं ने ईघाणं जाव वेमाणियाणं) मे रे ना२। यावत मानिन (पवरं) विशेष (जस्स जइ इंदिया अस्थि) भनी सीन्द्रिय छ
(कइ विहणं भंते! ईहा पण्णत्ता ?) लगवन् डि। ४८॥ प्रा२नी ४ी छ ? (गोयमा! पंचविहा ईहां पण्णत्ता) गौतम ! पांय प्रा२नी छडा डाय छे (तं जहा) ते मारे (सोइंदिय ईहा जाव फासिदिय ईहा) श्रीन्द्रिय है। यावत् २५शनन्द्रिय 8। (एवं जाव वेमाणिया) से प्रारे यावत् वैमानि सुधी (णवरं जस्स जइ इंदिया) विशेष से छे । જેમની જેટલી ઈન્દ્રિ
(कइविहेणं भंते ! उग्गहे पण्णत्ते) भगवन् ! ११ ॥ २॥ ४॥ छ ? (गोयमा। दुविहे उग्गहे पण्णत्ते) गौतम ! साना २१ डाय छे (तं जहा-अस्थोग्गहे
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩