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________________ पज्ञापनासो ओगद्धा विसेसाहिया, जिभिदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसा. हिया फासिंदियस्स उक्कोसिया उवओगद्धा विसेसाहिया५ । कइविहाणं भंते ! इंदिय ओगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा! पंचविहा इंदिय ओगाहणा पण्णत्ता, तं जहा-सोइंदिय ओगाहणा, जाव फासिदिय ओगाहणा, एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं, जस्स जइ इंदिया अत्थि६॥सू०८॥ छाया-कति विधः खलु भदन्त ! इन्द्रियोपचयः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! पञ्चविध-इन्द्रियोपचयः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-श्रोत्रेन्द्रियोपचयः, चक्षुरिन्द्रियोप वयः, घ्राणेन्द्रियोपचयः, जिहवे. न्द्रियोपचयः, स्पर्शनेन्द्रियोपचयः, नैरयिकाणां भदन्त ! कतिविध इन्द्रियोपचयः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! पश्चविधः इन्द्रियोपचयः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-श्रोत्रेन्द्रियोपचयः, यावत् स्पर्शनेन्द्रियोपचयः, एवं यावद् वैमानिकानाम्, यस्य यावन्ति इन्द्रियाणि तस्य तावद्विधश्चैव इन्द्रियो इन्द्रियोपचय आदि की प्ररूपणा शब्दार्थ-(कहविहे णं भंते ! इंदियउवचए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! इन्द्रियोपचय कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! पंचविहे इंदियउवचए पण्णत्ते ?) हे गौतम ! पांच प्रकार का इन्द्रियोपचय कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (सोइं. दिए उवचए) श्रोनेन्द्रिय उपचय (चक्खिदिए उवचए) चक्षुरिन्द्रिय उपचय (घाणिदिए उवचए) घाणेन्द्रिय उपचय (जिभिदिए उवचए) जिहवेन्द्रिय उप. चय (फासिदिए उवचए) स्पर्शनेन्द्रिय उपचय (नेरइयाणं भंते ! कइविहे इंदिओ वचए पण्णत्ते?) हे भगवन् ! नारकों का कितने प्रकार का इन्द्रियोपचय कहा गया है ? (गोयमा ! पंचविहे इंदियोवचए पण्णत्त ?) हे गौतम ? पांच प्रकार का इन्द्रियोपचय कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (सोइंदिओवचए जाव फासिंदि. ओवचए) श्रोत्रन्द्रियोपचय यावत् स्पर्शनेन्द्रियोपचय (एवं जाव वेमाणियाणं) ઈન્દ્રિચય આદિની પ્રરૂપણા शहाथ-(कइविहेणं भंते ! इंदिय उवचए पण्णत्ते ।) 3 मज! न्द्रिय 6५५५ ८६॥ २॥ ४ा छ १ (गोयमा ! पंचविहे इंदियउवचए पण्णत्ते ?) 3 गौतम ! पांय ४२॥ छन्द्रिया५यय ॥ छ (तं जहा) ते २॥ ४॥२ (सोइंदिएउवचए) श्रेन्द्रिय ७५यय (चक्खिं. दिए उवचए) यक्षन्द्रिय उपयय (घोणदिए उवचए) प्रा.न्द्रिय उपयय (जिभिदिए उब वए) लेन्द्रिय उपयय (फासि दिए उवचए) २५शेन्द्रिय ७५यय । (नेरइयाणं भंते ! कइविहे इंदिओवचए पण्णत्ते ?) भगवन् ! नाना खा ४२न। धन्द्रिया५यय ४९सा छ ? (गोयमा ! पंचविहे इंदियोवचए पण्णत्ते) ॐ गौतम ! पांय ४२॥ धन्द्रियो५५५ ४ा छ (तं जहा) ते २॥ प्रकारे (सोइंदिए उवचए जाव फासिदिओवचए) श्रीन्द्रियो५यय यात २५शनन्द्रिया५यय (एवं जाव वेमाणियाणं) ते वैमानिकी सुधी શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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