________________
५७६
प्रज्ञापनामुत्रे "पुव्यकयकम्मसाडणनिज्जरा” पूर्वकृतकर्मशातनं निर्जरा इति, किन्तु देशनिर्जरेयमवसेया, कपायजनितत्वात्, सर्वनिर्जरातु कपायरहितस्य सर्वनिरुद्धयोगस्य मोक्षसौधमारोहत एयोपजायते नेतरस्य, देशनिर्जरा तु सर्वकालं सर्वेषामपि संभवतीतिभावः, प्रकृतमुपसंहरन्नाह'एवं एए जोवाइया वेमाणियपज्जवसाया अहारसदंडगा जाव वेमाणिया, निलरिंसु, निजरेंति, निजरिस्तंति' एवम्-पूर्वोक्तरीत्या एते-पूर्वोक्ताः जीवादिका वैमानिकपर्यवसानाः अष्टादश दण्डकाः अतीतवर्तमान भविष्यत्कालभेदेन चयोपचयवन्धोदीरणा वेदना निर्जराणां षण्णां त्रिगुणिताना मष्टादशदण्डकपदवाच्याः यायद्-नैरयिकादि वैमानिकपर्यन्ता जीवविशेषाः समुच्चयजीवाश्च चतुर्मिः क्रोधादिकारणः अष्ट कर्मप्रकृती चितवन्तश्चिन्वन्ति
चेष्यन्ति, उपचितवन्तः, उपचिन्वन्ति, उपचेष्यन्ति, अभान्त्सुः बध्नन्ति, भन्स्यन्ति, उदैरयत्, उदीरयन्ति, उदीरयिष्यन्ति, अवेदयन्त, वेदयन्ते, वेदयिष्यन्ते, निरजा
भी है-'पुवकयकम्मसाडण निज्जरा' अर्थात् पूर्ववद्ध कर्मों का झडना निर्जरा है। किन्तु यहां जिस निर्जरा का कथन किया गया है, वह देश निर्जरा समझनी चाहिए, क्योंकि यह कषाय जनित है। सर्वनिर्जरा तो कषाय से रहित, योगों का सर्वथा निरोध कर देने वाले और मोक्षरूपी महल पर आरूढ होने वाले को ही होती है, अन्य को नहीं । देश निर्जरा सब जीव सदा काल करते रहते हैं। - अब उपसंहार करते हुए कहते हैं-इन पूर्वोक्त समुच्चय जीयों ने तथा नारकों से लेकर वैमानिक देवों तक के चौवीसों दंडकों के जीवों ने, अतीत, वर्तमान और भविष्य काल के भेद से चय, उपचय, बन्ध, उदीरणा, वेदना
और निर्जरा, की है, करते हैं और करेंगे। चय, उपचय आदि छह का तीनों कालों से गुणाकार करने पर अठारह दंडक होते हैं । उन्हें इस प्रकार कहना चाहिए-चय किया, करते हैं और करेंगे, उपचय किया, उपचय करते हैं और
घु ५५५ छ-पूव्वकयकम्मसाडण निज्जरा, अर्थातू ५५ मभन १५५ च्युत નિર્જરા છે. કિન્તુ અહીં જે નિર્જરાનું કથન કરાયેલું છે, તે દેશ નિર્જરા સમજવી જોઈએ, કેમકે તે કષાય જનિત છે. સર્વ નિર્જરાતે કષાયથી રહિત વેગોને સર્વથા નિરોધ કરનારા અને મોક્ષ રૂપી મહેલ પર આરૂઢ થનારાઓને જ હોય છે, બીજાઓને નથી લેતી. દેશ નિર્જરા બધા જ સદાકાળ કરતા રહે છે.
હવે ઉપસંહાર કરતા કહે છે, આ પૂર્વોક્ત સમુચ્ચય જીવોએ તથા નારકોથી લઈને વિમાનિક દેવે સુધીના ચોવીસે દંડના એ અતીત, વર્તમાન અને ભવિષ્યકાળના लेहथी यय, ७५यय, मन्ध, २४ा, येहना अने नि०२॥ ४रेस छ, ४२ छ, भने ४२शे. ચય, ઉપચય આદિ છએને ત્રણે કાળેથી ગુણાકાર કરતા અઢાર દંડક થાય છે. તેમને આ પ્રકારે કહેવા જોઈએ-ચય કર્યો, કરે છે, અને કરશે ઉપચય કર્યો ઉપચય કરે છે અને
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩