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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १३ २०३ अनीयपरिणामनिरूपणम् णामो यायच्छुक्लपर्णपरिणामः ५, गन्धपरिणामः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! द्विविधः प्रज्ञप्तः तद्यथा-मुरभिगन्धपरिणामः, दुरभिगन्धपरिणामश्च ६, रसपरिणामः खलु भदन्त ! कतिविध: प्रज्ञप्तः ? गौतम ! पञ्चविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-तिक्तरसपरिणामो यावद् मधुररसपरिणामः ७, स्पर्शपरिणामः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! अष्टविधः प्रज्ञप्तः तद्यथा-कर्कशस्पर्शपरिणामश्च यावद् रूक्षस्पर्शपरिणामश्च ८ । अगुरुलघुकपरिणामः (चण्णपरिणामे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! वर्ण परिणाम कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! पांच प्रकार का कहा है (तं जहा) बह इस प्रकार (कालवण्णपरिणामे जाच सुक्किल्लघण्ण परिणामे) कृष्णवर्ण परिणाम यावत् शुक्लवर्ण परिणाम ___(गंधपरिणामे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! गंध परिणाम कितने प्रकार का है ? (गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! दो प्रकार का कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (सुन्भिगंधपरिणामे दुन्भिगंधपरिणामे य) सुगंध परिणाम और दुर्गन्ध परिणाम (रसपरिणामे णं भंते ! काविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! रस परिणाम कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! पांच प्रकार का कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (तित्तरसपरिणामे जाच महुररसपरिणामे) तिक्तरसरूप परिणाम यावत् मधुररस परिणाम (फासपरिणामे णं भंते ! कविहे पण्णत्ते?) हे भगवन् ! स्पर्श परिणाम कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा! अट्ठविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! आठ प्रकार કહેવા જોઈએ. પશ અને રસના ઈન્દ્રિય પરિણામથી તેઓને ત્રીન્દ્રિય અને ચતુરિન્દ્રિય (अण्णपरिणामेणं भंते ! कइविहे पण्णत्त) सावन् १ परिणाम हेटसा प्रश्न ४ा छ ? (गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते) गौतम ! पांय प्रा२ना ४ा (तं जहा) ते २॥ ४२ (कालवण्णपरिणामे जाव सुकिल्लवण्णपरिणामे) ४१ ५२णाम यावत् शुसवर्ष परिणाम (गंधपरिणामेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! अ५५रिणाम टा प्रारना ४ा छ ? (गोयमा दुविहे पण्णत्ते) गौतम ! मे ॥२॥ ४ा छ. (ते जहा) ते मा प्रारे (सुब्भिगंधपरिणामे दुब्भिगंधपरिणामे य) सुगध परिणाम अने ५ परिणाम (रसपरिणामेणं भंते ! कइविह पण्णत्ते १) मावन् २सपरिणाम टारना ai छ ? (गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते) गौतम ! पांय ४ारना ४i छ (तं जहा) ते या प्रकारे (तित्तरसपरिगामे जाव महुररसपरिणामे) तितरस ३५ परिणाम यावत् मधुर२स परिणाम फासपरिणामेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?) समपन् ! २५श परिणम टा १२॥ ४ छ ? (गोयमा ! अविहे पण्णते) हे गौतम ! मा ४२॥ ४यां छे (तं श्री प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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