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________________ ५१८ प्रज्ञापनासूत्रे योगपरिणामेन मनोयोगिनोऽपि वचोयोगिनोऽपि, काययोगिनोऽपि, उपयोगपरिणामेन साकारोपयुक्ता अपि, अनाकारोपयुक्ता अपि ज्ञानपरिणामेन आभिनिवोधिकज्ञानिनोऽपि, श्रुतज्ञानिनोऽपि, अवधिज्ञानिनोऽपि, अज्ञानपरिणामेन मत्यज्ञानिनोऽपि श्रुताज्ञानिनोऽपि, विभङ्गज्ञानिनोऽपि दर्शनपरिणामेन सम्यग्योऽपि, मिध्यादृष्टयोऽपि सम्यगूमिध्यादृष्ट योsपि, चारित्रपरिणामेन नो चारित्रिणः, नो चारित्राचारित्रिणः, अचारित्रिणः, वेदपरिणामेन नो स्त्रीवेदकाः, नो पुरुषवेदकाः, नपुंसकवेदकाः, असुरकुमारा अपि एवञ्चैव, नवरं से क्रोध कषायी भी यावत् लोभकषाई भी हैं (लेस्सापरिणामेणं कण्ह लेस्सावि, नीललेस्सावि, काउलेस्सावि) लेइया परिणाम से कृष्णलेश्या वाले भी, नीलेश्या वाले भी, कापोतलेश्या वाले भी (जोगपरिणामेणं) योग परिणाम से (मणजोगी चि, जोगी वि, कायजोगी वि) मनोयोग वाले भी, वचनयोग वाले भी, काययोग वाले भी ( उवओगपरिणामेणं सागारोचउत्तावि, अणागारोव उत्तावि) उपयोग परिणाम से साकारोपयोग वाले भी, अनाकारोपयोग वाले भी ( णाणपरिणामेणं आभिणिबोहिवणाणीवि, सुघणाणीचि, ओहिणापीवि) ज्ञान परिणाम से अभिनिवोधिक ज्ञानी भी, श्रुतज्ञानी भी, अवधि - ज्ञानी भी (अण्णाणपरिणामेणं) अज्ञान परिणाम से (मइअण्णाणी वि, सुय अण्णाणी चि, विभंगणाणी वि) मत्यज्ञानी भी, श्रुताज्ञानी भी, विभंग ज्ञानी भी ( दंसणपरिणामेणं) दर्शन परिणाम से ( सम्मदिट्ठीवि, मिच्छादिट्ठीवि, सम्मामि - च्छादिट्ठीचि) सम्यग्दृष्टि भी, मिथ्या दृष्टि भी सम्यग्मिथ्या दृष्टि भी (चरित - परिणामेण नो चरिती, नो चरित्ताचरित्ती, अचरिती) चारित्र परिणाम से न चारित्रवान् हैं, न चारित्राचरित्र - देशचारित्र वाले हैं, अचारित्री हैं कसाई वि जाव लोहकसायी वि) उपाय परिणामयी डोध उपायी पक्ष यावत् बोल पायी पछे (लेस्सापरिणामेणं, कण्हलेस्सा वि, नीललेस्सा वि, काउलेस्सा वि) बेश्या परिशामथी कृष्ण बेश्यावाजा पशु, नीस बेश्यावाणा पशु, भयो बेश्यावाणा पशु (जोगपरिणामेणं) योग परिणामथी (मणजोगी वि, वयजोगी वि, कायजोगी वि) भन योगवाणा पशु, पथन योगवाणा यागु द्वय योगदाना या (उओगपरिणामेणं सागारोवउत्ता वि, अणागारोव उत्ता वि) उपयोग परिणामयी सामशेपयोगवाणा पशु, अनाहारोपयोगवाजा पशु ( णाणपरिणामेणं आभिणित्रोहिणाणी वि सुयगाणी वि ओहिणाणी त्रि) ज्ञान परिलाभथी मालिनीमोधि ज्ञानी पशु श्रुतज्ञानी पशु, अवधिज्ञानी पशु, (अण्णाणपरिणामेणं) अज्ञान परिणामी (मइ अण्णाणी वि सुय अण्णाणी वि, विभंगगाणी वि) भत्यज्ञानी पशु, श्रुता ज्ञानी ५), विलज्ञानी पशु (दंसणपरिणामेणं) दर्शन परिणामयी ( सम्मदिट्ठी वि; मिच्छा दिठि वि सम्माभिच्छादिट्ठी वि) सम्यग्दृष्टि पशु, मिथ्यादृष्टि पशु, सम्यग् मिथ्या दृष्टि पशु (चरितपरिणामेणं नो चरित्ती नो चरित्ताचरिती, अचरित्ती) शास्त्रि परिणामथी न यस्त्रिवान् छे न श्री प्रज्ञापना सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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