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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १२ सू० ६ प्रतरपूरणवक्तव्यनिरूपणम् _ ४७९ रिकाणि औधिकानि मुक्तानि, वैक्रियाणां भदन्त ! पृच्छा, गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-बद्धानि च मुक्तानि च, तत्र खलु यानि तावद् बद्धानि तानि संख्येयानि, समये समये अपहियमाणा अपहियमाणाः संख्येयेन कालेन अपहियन्ते, नो चैव खलु अभ्यधिकानि स्युः, तत्र खलु यानि तावद् मुक्तानि तानि खलु यथा औदारिकाणि औधिकानि. आहारकशरीराणि यथा औधिकानि, तैजस कार्मणानि यथा एतेषाञ्चैव औदारिकाणि, वानव्यन्तराणां यथा नैरयिकाणा मौदारिकाणि, वैक्रियशरीराणि यथा नैरयिकाणाम्, नवरं तासां जाता है (असंखेना) असंख्यात (असंखेज्जाहिं उत्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं कालओ) काल से असंख्यात उत्सर्पिणियों अवसर्पिणियों से (खेत्तओ) क्षेत्र से (अंगुल पढमवग्गमूल तइय वग्गमूलपडुप्पण्ण) तीसरे वर्गमूल गुणित अंगुल का प्रथम वर्गमूल (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लगा) उनमें जो मुक्त हैं (ते जहा ओरालिया ओहिया मुक्केल्लगा) वे समुच्चय मुक्त औदारिकों के समान (वेउव्यियाणं पुच्छा ?) वैक्रिय शरीरों संबंधी पृच्छा (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (बधेल्लगा य मुक्केल्लगा य) बद्ध और मुक्त (तत्थ णं जे ते बधेल्लगा ते ण संखिज्जा) उनमें जो बद्ध हैं, वे संख्यात हैं (समए समए अचहीरमाणे अवहीरमाणे) समय-समय में अपहृत होते-होते (संखेज्जेणे कालेणं) संख्यात काल में (अवहीरंति) अपहत होते हैं (नो चेव णं अवहीरिया सिया) मगर अपहृतनहीं हो चुकते (जे ते मुक्केल्लगा ते णं जहा ओरालिया ओहिया) जो मुक्त हैं वे समु. च्चय औदारिक के समान (आहारगसरीरा जहा ओहिया) आहारक शरीर समुच्चय आहारक के समान (तेयाकम्मगा जहा एतेसिं चेव ओरालिया) तैजस (जसंखेज्जा) असभ्यात (असंखेज्जाहि उसप्पिणि-ओसप्पिणिहि कालओ) आगथी असण्यात Galqयो-मसपियोथी (खेत्तो) क्षेत्रयी (अंगुलपढमवग्गमूलं तइयवग्गमूलपडुप्पण) त्री भूगथी गुणित मसना प्रथम पग भूख (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लगा) तेसोमांथी २ भुत छ (ते जहा ओरालिया मुक्केल्लगा) ते समुश्यय भुछत मोहछिन। समान (वेउब्बियाणं पुच्छा ?) वैठिय शरी२। समा २७ ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) है गौतम ! मे २न! Hai छ (तं जहा) तेथे २॥ प्रशारे छे (बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगाय) म मने मुद्रत (तत्थणं जे ते बद्धेल्लगा तेण संखिज्जा) तेसमा मद्ध छ, तेरा सच्यात छे (समए-समए अवहीरमाणे अवहीरमाणे) समय समयमा माइत थdi थतi (संखेज्जेणं कालेणं) से ज्यात मा (अवहीरंति) पाहत थाय छ. (नो चेव णं अवहिरिया सिया) ५ मपात नथी २rdi (जे ते मुक्केल्लगा तेण जहा ओरालिया ओहिया) तमा रे भुत छ त। समुच्यय मौ२ि४ा समान (आहारगसरोरा जहा ओहिया) मा २५ शरी२ सभुश्यय भाडा२७नी समान (तेय। कम्मगा जहा एएसि चेव ओरालिया) तेस श्री प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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