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________________ प्रमेवबोधिनी टीका पद १२ सू० ४ असुरकुमारादिनामौदारिकशरीरनिरूपणम् ४५७ एतेषाञ्चैव औदारिकाणि तथैव द्विविधानि भणितव्यानि, तैजसकार्मणशरीराणि द्विविधान्यपि यथा एतेषाञ्चव वैक्रियाणि एवं यावत्-स्तनितकुमाराः ॥सू० ४॥ ___टीका-अथासुरकुमारादीनामौदरिकादिशरीराणि प्ररूपयितुमाह-'असुरकुमाराणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पण्णता ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! असुरकुमाराणां कियन्ति औदारिकशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'जहा नेरइयाणं ओरालियसरीरा भणिया तहेव एएसि भाणियव्या' यथा नैरयिकाणामौदारिकशरीराणि मुक्तानि भणितानि तथैव एतेषामपि असुरकुमाराणामौदारिकशरीराणि मुक्तान्येव भणितव्यानि न तु बद्धानि, तेषामपि बद्धलब्ध्यसंभवात् बद्धौदारिकशरीराभावः, गौतमः पृच्छति-'असुरकुमाराणं भंते ! केवइया वेउव्वियसरीरा पण्णत्ता ?' हे भदन्त ! असुरकुमाराणां कियन्ति वैक्रियजैसे इन्हीं के औदारिक शरीर (तहेव दुविहा भाणियब्वा) उसी प्रकार दो तरह के कहने चाहिए (तेयाकम्मगसरीरा दुविहा चि जहा एतेसिं चेव विउब्धिया) तैजस कार्मणशरीर दोनों जैसे इन्हीं के चैक्रिय शरीर (एवं जाव थणिय. कुमारा) इसी प्रकार यावत् स्तनित कुमार । ___टीकार्थ-अब असुरकुमार आदि के औदारिक आदि शरीरों की प्ररूपणा करने के लिए कहते हैं गौतम-हे भगवन् ! असुरकुमारों के औदारिक शरीर कितने कहे हैं ? भगवान-हे गौतम ! जैसे नारकों के औदारिक शरीरों का कथन किया गया है, उसी प्रकार असुरकुमारों के औदारिक शरीर का कथन भी समझ लेना चाहिए । अर्थात् असुरकुमारों के औदारिक शरीर मुक्त ही होते हैं, बद्ध औदारिक शरीर नहीं होते। क्योंकि असुरकुमारों को भी भवस्वभाव के कारण औदारिक शरीर नहीं होता है। (आहारगसरीरा) मा २४ शश२ (जहा एतेसिं चेव ओरालिया) वा तमना मोही (२४ शरीर (तहेव दुविहा भाणियव्वा) मे प्रारे में प्र४।२ना वन (तेयाकम्मगसरीरा दुविहा वि एएसिं चेव विउव्विया) तेस आभा शरी२ मन्ने पातमान ठिय शरी२ (एवं जाव थणियकुमारा) से प्रारं यावत् स्तमितभार ટીકાથ–હવે અસુરકુમાર આદિના ઔદારિક આદિ શરીરની પ્રરૂપણા કરવાને માટે કહે છે શ્રી ગૌતમસ્વામી–હે ભગવન! અસુરકુમારોના ઔદારિક શરીર કેટલાં કર્યો છે? શ્રી ભગવાન ગૌતમ! જેવા નારકના દારિક શરીરનું કથન કરાયેલું છે તે જ પ્રકારે અસુરકુમારોના ઔદારિક શરીરનું કથન પણ સમજી લેવું જોઈએ, અર્થાત્ અસુરકુમારના ઔદારિક શરીર મુક્ત હોય છે, બદ્ધ ઔદારિક શરીર નથી હોતાં, કેમકે અસુરકુમારોના પણ ભવસ્વભાવને કારણે ઔદારિક શરીર નથી હતાં, प्र०५८ श्री प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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