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प्रमेपबोधिनी टीका पद १२ स० २ औदारिकादिशरीरविशेषनिरूपणम् कालतो यथौदारिकस्य मुक्तानि तथैव वैक्रियस्यापि, भणितव्यानि, कियन्ति खलु भदन्त ! आहारकशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-बद्धानि च मुक्तानि च, तत्र खलु यानि किल बद्धानि तानि खलु स्यात् सन्ति, स्यात् न सन्ति, यदा सन्ति जघन्येन एकं वा, द्वे वा, त्रीणि वा, उत्कृष्टेन सहस्रपृथक्त्वम्, तत्र खलु यानि किल मुक्तानि तानि खलु अनन्तानि यथा औदारिकस्य मुक्तानि तथैव भणितव्यानि, कियन्ति खलु भदन्त ! तै नसशरीराणि प्रज्ञतानि ? गौतम ! द्विविधानि, तद्यथा-बद्धानि च मुक्तानि च, तत्र खलु यानि बद्धानि तानि खलु अनन्तानि अनन्ताभिरुत्सपिण्यवसर्पिणीभि रपहियन्ते कालतः, होते हैं (कालओ) काल से (जहा ओरालियस्स मुक्केल्लया तहेव वेउब्वियस्सवि भाणियव्या) जैसे औदारिक के मुक्त कहे हैं, वैसे ही वैक्रिय के भी मुक्त कहने चाहिए
(केवइयाणं भंते ! आहारगसरीरया पण्णत्ता !) हे भगवन् ! आहारक शरीर कितने कहे हैं ? (गोयमा! दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (बल्लगा य मुक्केल्लगा य) बद्ध और मुक्त (तत्थ णं जेते बद्धेल्लया) उनमें जो बद्ध हैं (ते गं सिय अस्थि, सिय नत्थि) वे कदाचितू होते हैं, कदाचित् नहीं होते (जइ अत्थि) यदि हो (जहण्णेणं एक्को वा दो या तिषिण वा) जघन्यतः एक, दो या तीन होते हैं (उक्कोसेणं सहस्सपुहुत्त) उत्कृ. ष्ट सहस्त्र पृथक्त्व होते हैं (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया) उनमें जो मुक्त शरीर हैं (ते णं अणंता) वे अनन्त हैं (जहा ओरालियस्स) जैसे औदारिक के (मुक्केल्लया) मुक्त कहे हैं (तहेव भाणियव्या) उसी प्रकार कहना चाहिए।
(केवइया णं भते ! तेयगसरीरया पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! तैजस शरीर कितने कहे हैं ? (गोयमा दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! दो प्रकार के कहे हैं (तजहा) मुक्केल्लया तहेव वेउब्वियास वि भाणियव्वा) ॥ मोहा२ि४॥ भुत छ,तेपास વિક્રિયના પણ મુક્તક કહેવા જોઈએ.
(केणइयाणं भंते ! आहारगसरीरया पण्णत्ता ?) भगवन् ! माडा२४ शरी२ खi सो छ (गोयमा! दुविहा पण्णत्ता) : गौतम ! में प्रारना ह्या . (तं जहा) तेया मा ४२ (बद्धेलगा य मुक्वेल्लगा य) पद्ध भने भुत (तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया) तेसोमां २ मद्ध छ (ते णं सिय अत्थि सिय नत्थि) ते थित डाय छे. हाथित् नया हाता (जइ अत्थि) ने 31य (जहण्णेणं एको वा दो वा तिण्णि वा) धन्यत: से, मे २१२ नए डाय छ (उक्कोसेणं सहस्सपुहुत्त) टथी सडले पृथत्व हाय छ (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया) तमामाथी रे भुत शरी२ छ (ते णं अणंता) तेरा मनन्त छ (जहा ओरालियस्स) रेभ मोहा॥२४ (मुक्केल्लगा) भुछत ४ा छे (तहेव भाणियव्वा) से प्रारं हे नये
(केवइयाणं भंते तेयगसरीरया पण्णत्ता ?) हे मान् ! तेस शौ२ ८॥ ४छ ? (गोयमा! दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम ! ये ना Hai छ (तं जहा) ते मारे
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩