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प्रमेयबोधिनी टीका पद १२ सू. १ शरीरप्रकारनिरूपणम्
___ ४१७ एवम् असुरकुमाराणामपि यावत्स्तनितकुमाराणाम्, पृथिवीकायिकानां भदन्त ! कति शरीरकाणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! त्रीणि शरीरकाणि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-औदारिकम्, तैजसम्, कार्मणम्, एवं वायुकायिकवर्ज यावत्-चतुरिन्द्रियाणां, वायुकायिकानां भदन्त ! कति शरीरकाणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! चत्वारि शरीरकाणि प्रज्ञप्त नि, तद्यथा-औदारिकम्, वैक्रियम् तेजसं, कार्मणम्, एवं पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानामपि, मनुष्याणां भदन्त ! कति शरीरकाणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम!
(नेरइयाणं भंते ! कइ सरीरया पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! नारकों के कितने शरीर कहे हैं ? (गोयमा ! तो सरीरया पण्णत्ता) हे गौतम ! तीन शरीर कहे हैं ( जहा) वे इस प्रकार (वेउधिए, तेथए, कम्मए) वैक्रिय, तैजस, कार्मण (एवं असुरकुमाराण वि जाव थणियकुमाराणं) इसी प्रकार असुर कुमारों के यावत् स्तनित कुमारों के __(पुढविकाइयाणं भंते ! कइ सरीरया पण्णत्ता) हे भगवन् ! पृथ्वीकाइकों के कितने शरीर कई गए हैं ? (गोयमा ! तओ सरीरया पण्णत्ता) हे गौतम ! तीन शरीर कहें हैं (तंजहा ओरालिए, तेथए, कम्मए) वे इस प्रकार-औदारिक तैजस, कार्मण (एवं वाउकाइयवज जाव चउरिंदियाणं) इसी प्रकार वायुकायिकों को छोडकर यावत् चौइन्द्रियों तक (वाउकाइयाणं मंते ! कइ सरीरया पण्णत्ता) भगवन् ! यायुकायिकों के कितने शरीर कहे हैं ? (गोयमा ! चत्तारि सरीरया पण्णत्ता) हे गौतम ! चार शरीर कहे हैं (तं जहा-ओरालिए, वेउविए तेयए, कम्मए) औदारिक, वैक्रिय, तैजस, कार्मण (एवं पंचिंदियतिरिक्वजोणियाणवि) इसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के भी (मणुस्साण भंते ! कइ सरीरया
(नेरइयाणं भंते ! कइ सरीरया पण्णत्ता) सन् ! नारीनटai शरी२ ४i छ (गोयमा ! तओ सरीरया पण्णत्ता) हे गौतम ! ! शरी२ ह्या छ (तं जहा) तय। मा
२ (वेउब्विए, तेअए, कम्मए) वैठिय, तेस, आभए (एवं असुरकुमाराण वि जाव थणिय कुमाराणं) से प्रारे ससुभाशना यावत् स्तनित सुमारे। सुधी
(पुढविकाइयाणं भंते ! कइ सरीरया पण्णत्ता?) हे भगवन्! पृथ्वीजयन शरी२ zii छ ? (गोयमा ! तओ सरीरा पण्णत्ता) गौतम ! नए शरी२ सा छे (तं जहा) तेसो मा ४२ (ओरालिए, तेयए, कम्मए) मोहा४ि, तेसू, आम (एवं वाउकाइयर जाव चरिंदियाणं) मे ५४१२ वायुायि। सिपाय यावत् अतुन्द्रिय सुधा (बाउकाइयाणं मंते ! कइ सरीरया पण्णत्ता) हे भगवन् ! यिन । शरी२ हाय ॐ ? (गोयमा ! चत्तारि सरीरया पण्णत्ता) हे गौतम ! २२ शरीर ह्यां छ (तं जहा ओरालिए, वेउब्बिए, तेयए कम्मए) मे 2मा प्रारे-मो२ि४, वैठिय, तेस भए (एवं पंचिंदियनिरिक्खजोणियाण वि) मे २ पयन्द्रिय तिय याना ५५५ (मणुस्साणं भंते ! कइ सरीरया पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! माणुसोना खi शरी२ ४i छ (गोयमा ! पंच
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શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર: ૩