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________________ प्रज्ञापनासूत्रे ____टीका-अथैकवचनादि विशिष्ट भाषाविषयकसन्देहनिराकरणाथै गौतमः पृच्छति'अह भंते ! मणुस्से महिसे आसे हत्थी सीहे बग्घे विगे दीविए अच्छे तरच्छे परस्सरे रासभे सियाले विराले सुण ए कोलसुणए कोवकंतिए ससए चित्तए चिल्ललए जे यावन्ने तहप्पगारा सब्बा सा एगवऊ ?' हे भदन्त ! अथ मनुष्याः, महिषः, अश्वः, हस्ती, सिंहः, व्याघ्रः, वृकः शशादनः (भेडिया) इति भाषाप्रसिद्धः, द्वीपी-चित्रकविशेषः, ऋक्ष:-भल्लूकः, तरक्षः-व्या. घ्रजातिविशेषः, पराशरः-शरमपदवाच्यः, परस्सरो वा गण्डः 'गैंडा' इति भाषाप्रसिद्धः, रासभ:-गर्दभः, शगाल:-क्रोष्टा, विडाल:-मार्जारः, शुनक:-श्वा, कोलशुनक:-मृगया कुशलः श्वा, कोकन्तिकः-लुङ्कडी पदवाच्यः पशुविशेषः, शशकः प्रसिद्धः, चित्रका-(चिता) इति भाषा प्रसिद्धः, चिल्ललका-आरण्यकः-पशुविशेषः, येऽपि चान्ये तथाप्रकारा:-एकवचन न्ताः शब्दाः सन्ति किम् सर्वा सा एकवाकू एकत्वप्रतिपादिका भाषा वर्तते ? अयमभिप्रायः-प्रत्येक वस्तु धर्मधर्म समुदायात्मक भवति धर्माश्च प्रतिवस्तु अनन्ता भवन्ति, मनु ध्य इत्याद्युक्तौ च सकलं वस्तु धर्मधर्मिसमुदायात्मकं परिपूर्ण प्रतीयते, एकस्मिंश्चार्थे एकवचनं सन्देह का निवारण करने के लिए प्रश्न करते हैं श्री गौतमस्वामी-हे भगवन् ! (मणुस्से, महिसे, आसे, हत्थी, सीहे, वग्धे, विगे, दीविए, अच्छे, तरच्छे, परस्सरे, रासभे, सियाले, विहाले, सुणए, कोलसुणए, कोक्कंतिए, ससए, चित्तए, चिल्ललए, तथा इसी प्रकार के अन्य जो शब्द हैं, वे सब क्या एक वचन हैं ? अर्थात् इस प्रकार की भाषा क्या एकत्व का प्रतिपादन करने वाली भाषा है ! तात्पर्य यह है-धर्मो और धर्मों के समूह को वस्तु कहते हैं। प्रत्येक वस्तु में अनन्त धर्म पाये जाते हैं। 'मनुष्य' इस प्रकार कहने पर धर्मों एवं धर्मी का समूह रूप सम्पूर्ण वस्तु का बोध होता है। मगर एक वचन का प्रयोग एक वस्तु के लिए और बहुवचन का प्रयोग बहुत वस्तुओं के लिए होता है ! यहां 'मनुष्य' इस प्रकार एक वचन का प्रयोग करने पर भी मनुष्यगत अनन्त धर्मों का बोध होता है। लोक में भी एकवचन के द्वारा निवा२९५ ४२वाना भाट प्रश्न ४२ छ- भगवन् ! भनुष्य, पा31, घो), हाथी, सि, पाय, विज, विम, २५२७, त२२७, ५२२४२, रासस, सियाण, विरास, सु, ससुर, કર્કતિએ, સસક, ચિત્તા, ચિલ્લલ અ. તેમજ એ પ્રકારના અન્ય જે શબ્દ છે તેઓ બધા શું એક વચન છે? અર્થાત એ પ્રકારની ભાષા શું એકત્વનું પ્રતિપાદન કરવાવાળી ભાષા છે? તાત્પર્ય એ છે ધમ અને ધમીના સમૂહને વસ્તુ કહે છે. પ્રત્યેક વસ્તુમાં અનન્ત ધર્મ મળી આવે છે. “માણસ એ રીતે કહેવાથી ધર્મો તેમજ ધમીના સમૂહના રૂપ સપૂર્ણ વસ્તુને બંધ થાય છે. પણ એક વચનને પ્રગ એક વસ્તુના માટે અને બહુ વચનને પ્રયોગ ઘણી વસ્તુઓ માટે થાય છે. અહીં “મનુષ્ય” એ રીતે એકવચનને પ્રયોગ કરવાથી પણ મનુષ્યગત અનન્ત ધર્મોને બંધ થાય છે. લેકમાં પણ એક વચન દ્વારા શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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