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पमेययोधिनी टीका पद ११ सू० ४ वचनविशेवमिरुपणम्
छाया-अथ भदन्त ! मनुष्यो, महिषः, अश्वः, हस्ती, सिंहः, व्याघ्रः, वृकः, द्वीपी, ऋक्षः, तरक्षः, पराशरः, रासभः शृगालः, विडालः, शुनकः, कोलशुनकः, कोकन्तिकः, शशकः, चित्रकः, चिल्ललकः, येऽपि चान्ये तथाप्रकाराः, सर्वा सा एकवाक् ? हन्त, गौतम ! मनुष्यो यावत् चिल्ललको येऽपि चान्ये तथाप्रकाराः सर्वा सा एकवाक्, अथ भदन्त ! मनुष्याः यावत् चिल्ललका येऽपि चान्ये तथाप्रकारकाः सर्वा सा बहुवाक ? हन्त, गौतम ! मनुष्या
वचनविशेष की वक्तव्यता शब्दार्थ-(अह) अथ (भंते) भगवन् ! (मणुस्से) मनुष्यः-मनुष्य (महिसे) महिषः-भंसा (आसे) अश्वः-अश्व (हत्थी) हस्ती-हाथी (सीहे) सिंहासिंह (वग्धे) व्याघ्रः-वाघ (विगे) वृकः-भेडिया (दीविए) दीपी-छीपक (अच्छे) ऋक्ष:-रीछ (तरच्छे) तरक्षः-तरक्ष (परस्सरे) पराशरः-गैडा (रासभे) रासभा-गधा (सियाले) शृगाल:-सियार विराले (विडालः-विलाव) सुणए (शुनकः-कुत्ता) (कोलसुणए) कोलशुनका-शिकारी कुत्ता (कोक्कंतिए) कोकन्तिकी-लोमडी (ससए) शशकः-खरगोश (चित्तए) चित्रकः-चित्ता (चिल्ललए) चिल्ललक:जंगली जन्तुविशेष (जे यावन्ने तहप्पगारा) इसी प्रकार के जो अन्य हैं (सव्वा) सब (सा) वह (एगवऊ ?) एक वचन हैं ? (हंता) हां (गोयमा) हे गौतम ! (मणुस्से जाव चिल्ललए जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वा सा एगवऊ) मनुष्यः यावत् चिल्ललका तथा इसी प्रकार के जो अन्य हैं, वह सब एकवचन हैं।
(अह) अथ (भंते) भगवन् ! (मणुस्सा) मनुष्याः -बहुत मनुष्य (जाव) यावत् (चिल्ललगा) चिल्ललकाः (जे यावन्ने तहप्पगारा) जो इसी प्रकार के अन्य हैं (सव्वा सा बहुवऊ) वह सब बहुवचन हैं ? (हंता गोयमा!) हां, गौतम ! (मणु
વચન વિશેષની વક્તવ્યતા शम्दाथ-(अह) मथ (भंते !) लगवन् ! (मणुरसे) मनुष्य (महिसे)= (आसे) २५ (हत्थी) हाथी (सीहे) सिंह (वग्धे) १५ विगे (वृकः १३) (दीविए) दीपी (अच्छे) २७ (तरच्छे) त२६ (परस्सरे पराशरः)-गे। (रासभे) गम (सियाले) शिया (विराले) मिला. (सुणए-शुनकः) त। (कोलसुणए-कोलशुनकः) शिरी सुत। (कोक्कंतिए) लोमडी (ससर-शशकः) शरायु (चित्तए-चित्रकः) यीत्तो (चिल्ललए) neी तुविशेष (जे यावन्ने तहप्पगारा) से १२॥२ मीछ (सव्वा) या (सा) (एगवऊ ?) से क्यन छ ? (हंता) है। (गोयमा !) 3 गौतम ! (मणुस्से जाव चिल्ललए जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वा सा एग वऊ मनुष्य: यावत् चिल्ललकः तथा प्र४२नारे सन्य छे, मया वयन छ
(अह) Aथ (भंते !) ॐ भगवन् (मणुस्सा मनुष्याः) ध। मनुष्य (जाव) यावत् (चिल्ललगा) Nिet: (जे यावन्ने तहप्पगारा) रे मे २॥ मीत छ (सव्वा सा बहु वऊ) ५५महुपयन छ ? (हंता गोयमा !) . गौतम ! (मणुस्सा जाव चिल्लगा) मनुष्या:
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩