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________________ २४४ प्रज्ञापनासूत्रे न एषा भाषा मृषा, अथ भदन्त ! या च स्त्रीवाक् या च पुरुषवाक, या खलु नपुंसकवाक प्रज्ञापनी खलु एषा भाषा, न एषा भाषा मृपा ? हन्त, गौतम ! या च स्त्रीवाक, या च पुंवाक् भाषाविशेष-वक्तव्यता शब्षार्थ-(अह) अथ (भंते) भगवन् ! (गाओ) गाय (मिया) मृग (पस्) पशु (पक्खी) पक्षी (पण्णवणी णं एसा भासा) यह भाषा प्रज्ञापनी है ? (ण एसा भासा मोसा) यह भाषा भूषा नहीं है ? (हंता) हां (गोयमा) हे गौतम ! (जा य गाओ मिया पसू पक्खी पण्णवणी णं एसा भासा) जो गाय, मृग, पशु, पक्षी, यह भाषा प्रज्ञापनी है (ण एसा भासा मोसा) यह भाषा मृषा नहीं है। (अह भंते ! जाय इत्थीवऊ) अब भगवान् यह जो स्त्रीवचन है, (जा य पुरिसवऊ) जो पुरुषवचन है (जा य पुंसगवऊ) जो नपुंसक वचन है (पण्णवणी णं एसा भासा) यह भाषा प्रज्ञापनी है (ण एसा भासा मोसा) यह भाषा मृषा नहीं है ? (हंता गोयमा !) हां गौतम !(जाय इत्थीवऊ, जा य पुमवऊ, जाय नपुं. सगवऊ) जो स्त्रीवचन है, जो पुरुषवचन है, जो नपुंसकवचन है (पण्णवणी णं एसा भासा) यह भाषा प्रज्ञापनी है (न एसा भासा मोसा) यह भाषा मृषा नहीं है। (अह भंते ! जा य इत्थि आणमणी, जा य पुमआणवणी, जाय नपुंसग आणमणी, पण्णवणी गं एसा भासा) अथ भगवन् ! जो स्त्री आज्ञापनी, पुरुषआज्ञापनी, नपुंसक-आज्ञापनी है, यह भाषा प्रज्ञापनी है (ण एसा भासा ભાષા વિશેષ વક્તવ્યતા शहाथ-(अह) अथ (भंते) 3 लगवन् ! (गोवो) आय (मिया) भृ (पसू) ५१ (पक्खी) पक्षी (पण्णवणीणं एसा भासा) मा मापा प्रज्ञापनी छ ? (ण एसा भासा मोसा) मा भाषा भूषा नथी (हंता) । (गोयमा!) गौतम ! (जा य गाओ मिया पसू पक्खी पण्णवणीणं एसा भासा) २ ॥य, भृग, पशु, पक्षी, 2 लापा प्रज्ञापनी छ (ण एसा भासा मोसा) 20 लाषाभूषा नथी (अह भंते ! जा इत्थी वऊ) व मावन् ! २२ स्त्री क्यन छ (जा य पुरिस वऊ) २ ५३५ वयन छ, (जा य नपुंसग वऊ ) २ नस४ qयन छ, ( पण्णवणीणं एसा भासा) मा भाषा प्रशायनी छे (ण एसा भासा मोसा) २॥ भाषा भूषा नथी ? (हंता गोयमा !) है। गौतम ! (जा य इत्थीवऊ, जा य पुमवऊ, जा य नपुंसगवऊ) रेस्त्री यन छ, २ ५३५वयन छ, २ नस४ पथन छ (पण्णवणीणं एसा भासा) मा भाषा प्रज्ञापनी छ (न एसा भासा मोसा) मा भाषा भूषा नथी (अह भंते ! जा य इत्थी आणमणी, जा य पुम आणमणी, जा य नपुंसग ओणमणी, पण्णवणीणं एसा भासा) मथ 3 लगवन् ! मेरी माज्ञापनी, ५३५ माशायनी, नस आपनी छ, से मापा प्रज्ञापनी छ (ण एसा भासा मोसा) 4ला! भूषा नथी (हंता श्री प्रशान॥ सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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