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प्रज्ञापनासूत्रे
एवमुच्यते - अवधारणी खलु भाषा, स्यात् सत्या, स्यात् मृषा, स्यात् सत्यामृपा, स्यात् असत्यामृषा ? गौतम ! आराधिनी सत्या, विराधिनी मृषा, आराधनविराधिनी सत्यामृषा, या नैवाराधनी, नैव विराधिनी नैव आराधनविराधिनी सा असत्यामृषा नाम चतुर्थी भाषा, तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते - आराधिनी खलु भाषा स्यात् सत्या स्यात् मृषा, स्यात् सत्यामृषा, स्यात् असत्यामृषा ॥ सू० १ ॥
टीका-पूर्व दशमपदे प्राणिना मुपपातक्षेत्रस्य रत्नप्रभादेश्चरमाचरमवक्तव्यता प्ररूपिता, (सेकेणणं भंते! एवं बुच्चइ) हे भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है किं (ओधारिणी णं भासा सिय सच्चा, सिय मोसा, सिय सच्चामोसा, सिय असच्चामोसा ?) अवधारिणी भाषा सत्य भी, असत्य भी, सत्यामृषा भी, असत्यामृषा भी होती है ? (गोयमा ! आराहिणा सच्चा) हे गौतम! आराधिनी भाषा सत्य है (विराहिणी मोसा) विराधिनी भाषा असत्य है (आराहण विराहिणी सच्चामोसा) आराधिनी - विराधिनी भाषा सत्यमृषा है (जा) जो (णेव आराहिणी, व विराहिणी) न आराधिनी हो, न विराधिनी हो (सा असच्चामोसा णामं चउत्थी भासा) वह असत्यावृषा नामक चौथी भाषा है (से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ) हे गौतम! इस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि (ओहारिणी भासा सिय सच्चा, सिय मोसा, सिय सच्चामोसा, सिय असच्चामोसा) अवधारिणी भाषा सत्य भी, असत्य भी, सत्यामृषा भी और अस त्यामृषा भी होती है ॥ १ ॥
टीकार्थ - इससे पूर्व दशम पद में प्राणियों के उपपातक्षेत्र रत्नप्रभा आदि के चरमत्व - अचरमत्व की वक्तव्यता कही है, अब ग्यारहवें पद में सत्य, मृषा, (सेकेणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ) हे भगवन् ! शा हेतुथी मेवु हेवाय छे (ओधारिणीणं भासा सिय सच्चा सिय मोसा, सिय सच्चामोसा, सिय असच्चा मोसो ?) अवधारिणी भाषा सत्य यागु, असत्य पाशु, सत्याभूषा पशु, असत्याभूषा पशु थाय छे (गोयमा ! आराहिणी सच्चा) हे गौतम! आराधिनी भाषा सत्य छे (विराहिणी मोसा) विराधिनी भाषा असत्य छे (आराहणविरहिणी सच्चा मोसा) आराधिनी - विराधिनी भाषा सत्या भूषा छे (जा) ले (णेव आराहिणी, णेव विराहिणी ) नथी माराधिनी में नथी विरोधिनी (सा असच्चा मोसा णामं चउत्थी भासा) ते असत्या भूषा नाम योथी भाषा छे (से तेण द्वेण गोयमा ! एवं वच्चइ) हे गौतम! मे हेतुथी भेषु उडेवाय छे ! ( अहारिणी भासा सिय सच्चा, सिय मोसा, सिय सच्चा मोसा, सिय असच्चा मोसा) अवधारिणी भाषा सत्य પણ અસત્ય પણ, સત્યામૃષાપણુ અને અસત્યમૃષા પણ થાય છે !! ૧ ૫
ટીકા”—આનાથી પહેલા દશમા પટ્ટમાં પ્રાણિયાના ઉપપાત ક્ષેત્ર રત્નપ્રભા આદિના ચરમત્ય-અચરમત્વ વિ. વક્તવ્યતા કહી, હવે અગીયારમાં પદમાં સત્ય મૃષા સત્યમૃષા,
श्री प्रज्ञापना सूत्र : 3