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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १० सू. ६ संस्थाननिरूपणम् __१८१ आयतम् , अनन्तप्रदेशिकम् असंख्येयप्रदेशावगाढम् यथा संख्येयप्रदेशावगाढम् , एवं यावत् आयतम् , परिमण्डलस्य खलु भदन्त ! संस्थानस्य संख्येयप्रदेशिकस्य संख्येयप्रदेशावगाढस्य अचरमस्य च चरमाणाञ्च चरमान्तप्रदेशानाञ्च,अचरमान्तप्रदेशानाश्च द्रव्यार्थतया प्रदेशार्थतया द्रव्यार्थप्रदेशार्थतया कतरे कतरेभ्योऽल्पावा, बहुका वा तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोकम् परिमण्डलस्य संस्थानस्य संख्येयप्रदेशिकस्य संख्येयप्रदेशागाढस्य द्रव्यार्थतया (परिमंडले णं भंते ! संठाणे अणंतपएसिए संखेज्जपएसोगाढे) हे भगवन् ! अनन्त प्रदेशी संख्यात प्रदेशों में अवगाढ परिमंडल संस्थान (किं चरमे, अचरमे, पुच्छा ?) क्या चरम है, अचरम है, प्रश्न (गोयमा ! तहेव जाव आयते) हे गौतम ! इसी प्रकार यावत् आयत संस्थान (अणंतपएसिए असंखेज्जपएसोगाढे जहा संखेज्जपएसोगाढे) असंख्यातप्रदेशों में अवगाढ अनन्तप्रदेशी संख्यात प्रदेशावगाढ के समान (एवं जाव आयते) इसी प्रकार आयत तक। (परिमंडलस्स णं भंते ! संठाणस्स संखेज्जपएसियस्स संखेज्जपपसोगाढस्स अचरिमस्स य चरिमाण य चरमंतपएसाण य अचरमंतपएसाण य) हे भगवन् ! संख्यातप्रदेशी, संख्यातप्रदेशों में अवगाढ अचरम, चरमो, चरमान्तप्रदेशों और अचरमान्तप्रदेशों में से (दव्वट्टयाए) द्रव्य की अपेक्षा से (पएसट्टयाए) प्रदेशों की अपेक्षा से (दव्वट्ठपएसट्टयाए) द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से (कयरे कयरेहिंतो) कौन किससे (अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा ?) अल्प. बहत, तुल्य या विशेषाधिक है ? (गोयमा! सम्वत्थोवे परिमंडलसंठाणस्स संखेज्जपएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स दवट्ठयाए एगे अचरिमे) हे गौतम ! (परिमंडलेणं भंते ! संठाणे आणंतपएसिए संखेज्जपएसोगाढे) हे भगवन् ! मनन्त अशी सध्यात प्रदेशमा अ॥८ परिभ६ संस्थान (किंचरमे, अचरमे, पुच्छा ? १ २२म छ, भयरम छ, प्रश्न ? (गोयमो! तहेव जाव आयते) हे गौतम ! मे और यावत् मायत संस्थान (अणंतपएसिए असंखेज्जपरसोगाढे जहा संखेज्जपएसोगाढे) मस ज्यात प्रदेशमा म मनन्त प्रदेशी यात प्रशाना समान (एवं जाव आयते) એજ રીતે આયત સુધી (परिमंडलस्स णं भंते ! संठाणस्स संखेज्जपएसियस संखेज जपएसोंगाढस्स अचरिमस्स वा चरिमाण य चरमंतपएसाण य अचरमंतपएसाण य) हे सावन् ! सच्यात अशी सभ्यात પ્રદેશમાં અવગાઢ અચરમ, ચરમે, ચરમાન્ત પ્રદેશ અને અચરમાન્ત પ્રદેશ भांथी (दव्वदयाए) द्रव्यनी अपेक्षाथी (पएसटुयाए) प्रशानी अपेक्षाथी (दव्वटुपएसट्रयाए) द्रव्य भने प्रशानी अपेक्षाथी (कयरे कयरे हिंतो) नाथी (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) १८५, ]]; तुल्य, मार विशेषाधि छे. श्री प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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