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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १० सू. ५ द्विप्रदेशादिस्कन्धस्य चरमाचरमत्वनिरूपणम् १७९ स्यात् असंख्येयप्रदेशावगाढम् , नो अनन्तप्रदेशावगाढम् , एवं यावत् आयतम् , परिमण्डलं खलु भदन्त ! संस्थानम् संख्येयप्रदेशिकम् संख्येयप्रदेशावगाढम् किं चरमम् , अचरमम् , चरमाणि, अचरमाणि, चरमान्तप्रदेशाः, अचरमान्तप्रदेशाः ? गौतम ! परिमण्डलं खलु संस्थानं संख्येयप्रदेशिकम् संख्येयप्रदेशावगाढम् नो चरमम् , नो अचरमम् नो चरमाणि नो अचरमाणि, नो चरमान्तप्रदेशाः, नो अचरमान्तप्रदेशा!, नियमात् अचरमं चरमाणि च चरमान्तप्रदेशाश्च अचरमान्तप्रदेशाश्व, एवं यावद् आयतम् , परिमण्डलं खलु भदन्त ! पएसोगाढे, सिय असंखेज्जपएसोगाढे, नो अणंतपएसोगाढे) गौतम ! कदाचित् संख्यात प्रदेशों में अवगाढ होता है, कदाचित् असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ होता है, अनन्त प्रदेशों में अवगाढ नहीं होता (एवं जाव आयते) इसी प्रकार आयत तक। (परिमंडले णं भंते ! संठाणे संखेज्जपएसिए संखेज्जपएसोगाढे किं चरमे, अचरमे, चरमाई, अचरमाइं, चरमंतपएसा, अचरमंतपएसा?) हे भगवन् ! संख्यात प्रदेशी और संख्यात प्रदेशों में अवगाढ परिमंडल संस्थान क्या चरम है ? अचरम है ? चरमाणि है ? अचरमाणि है ? चरमान्तप्रदेश है ? अचरमान्तप्रदेश है ? (गोयमा ! परिमंडले णं संठाणे संखेजपएसिए संखेजपएसोगाढे नो चरमे, नो अचरमे, नो चरमाइं, नो अचरमाइं, नो चरमंतपएसा, नो अचरमंतपएसा) हे गौतम ! संख्यात प्रदेशी और संख्यात प्रदेशों में अवगाढ परिमंडल संस्थान चरम नहीं, अचरम नहीं, चरमाणि नहीं, अचरमाणि नहीं, चरमान्त प्रदेश नहीं, अचरमान्त प्रदेश नहीं (नियमा) नियम से (अचरमं चरमाणि य अचरम और अचरमाणि है (चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य) चरमान्त प्रदेश असंखिज्जपएसोगाढे नो अणंतपएसोगाढे) गौतम ! ४ायित् सन्यात प्रदेशमा साढ થાય છે, કદાચિત્ અસંખ્યાત પ્રદેશમાં અવગાઢ થાય છે, અનન્ત પ્રદેશોમાં અવગાઢ थत नयी (एवं जाव आयते) मे ४ारे मायात सुधी। (परिमंडले णं भंते संठाणे संखेज्जपएसिए, संखेज्जपएसोगाढे, किं चरमे, अचरमे, चरमाइं, अचरमाइं, चरमंतपएसा, अचरमंतपएसा ?) है सावन् ! सध्यात प्रदेशी मन સંખ્યાત પ્રદેશમાં અવગાઢ પરિમંડલ સંસ્થાન શું ચરમ છે? અચરમ છે? ચરમાણિ छ १ सयरमाण छ ? २२भान्त प्र४० छ ? भयरमान्त प्रदेश छ ? (गोयमा ! परिमंडले णं संठाणे संखज्जपएसिए संखेज्जपएसोगाढे नो चरमे, नो अचरमे, नो चरमाइं, नो अचरमाइं नो चरमंतपएसो नो अचरमंतपएसा) 3 गौतम ! सध्यात प्रथी भने સંખ્યાત પ્રદેશોમાં અવગાઢ પરિમંડલ સંસ્થાન ચરમ નહીં ચરમાણિ નહીં. અચરમાણિ नही; ३२भान्त प्रदेशी नही २मयरमा-तप्रदेशी ५१ नथी (नियमा) नियमथी (अचरमं चरमाणि य) भयरम भने यसमा छ (चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य) समान्त प्रदेश श्री प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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