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________________ प्रबोधिनी टीका पद १० सू० ५ द्विप्रदेशादिस्कन्धस्य चस्माचरमत्वनिरूपणम् १३३ २३ स्यात् चरमाणि च अचरमश्च अवक्तव्यानि च २४ स्यात् चरमाणि च अचरमाणि च अवक्तव्यश्च २५ स्यात् चरमाणि च अचरमाणि चावक्तव्यानि च २६ संख्येयप्रदेशिकः असंख्येयप्रदेशिकः अनन्तप्रदेशिकः स्कन्धो यथैवाष्टप्रदेशिकस्तथैव प्रत्येकं भणितव्यम् -परमाणौ च तृतीयः प्रथमस्तृतीयश्च भवतो द्विप्रदेशे । प्रथमस्तृतीयो नवम एकादशच त्रिप्रदेशे ॥ १ ॥ प्रथमस्तृतीयो नवमो दशम एकादशश्च द्वादशः । भङ्गाश्चतुष्प्रदेशे त्रयोविंशश्च बोद्धव्यः माणि और अवक्तव्यनि है, (२२) (सिय चरिमाई च अचरिमे च अवन्त्तव्वए य) कथंचित् चरमाणि, अचरम और अवक्तव्य है, (२३) (सिय चरिमाई च अचरमे च अवतव्वयाई च) कथंचित् चरमाणि, अचरम और अवक्तव्यानि है, (२४) (सिय चरिमाइ च अचरिमाई च अवत्तव्वए य) कथंचित् चरमाणि अच रमाण और अवक्तव्य है, (२५) (सिय चरमाई' च अचरमाई च अवक्तव्याइ च) कथंचित् चरमाणि अचरमाणि और अवक्तव्यानि है, (२६) ( जहेब अट्ठपए सिए तहेव पत्तेयं भाणियन्यं) जैसा अष्टप्रदेशी वैसा ही प्रत्येक कहना चहिए | संग्रहगाथाओं का शब्दार्थ - (परमाणुम्मि य तइओ) परमाणु में तीसरा भंग (दुपसे) प्रदेश स्कंध में (पढमो तइओ) प्रथम और तीसरा भंग (होति) होते हैं (तपसे) त्रिप्रदेशी स्कंध में (पढमो तइओ नवमो एक्कारसमो य) प्रथम, तीसरा, नौवां और ग्यारहवां (चउप्परसे) चौप्रदेशो में (पढमो तइओ नवमो दसम एक्कारसमोय बारसमो तेवीइसमो भंगा) प्रथम, तृतीय, नौवां, दसवां, ग्यारहवां बारहवां और तेईसवां भंग होते हैं (पंचमए) पंचप्रदेशी स्कंध में व्वयाइं च) अथथित् यरभ, अथरमाथि भने अवक्तव्यानि छे, २२ (सिय चरमाई च अचरिमे च अवत्तव्त्रय) इथं चित् यरभाषि, अयरभ भने अवतव्य छे, २3 (सिय चरिमाईं च अचरमेय अवत्तव्ययाई च) ४थयित् यरभाषि, अयरम अने भवस्तव्यनि छे, २४ (सिय चरिमाइं च अचरिमाई च अवत्तव्वर य ) अथचित् थरमाथि, अथरमाथि भने अवक्तव्य छे, २५ (सिय चरमाई च अचरमाई च अवत्तव्वयाई च) प्रथचित् यरभाषि અચરમાણિ અને અવક્તવ્યાનિ છે, ૨૬ (जव अपएसए तव पत्तेयं भाणियां) मेवु मष्ट प्रदेशीनु एडेस छे, तेवु કથન દરેનુ કહેવુ જોઇએ, संग्रह गथामोना शब्दार्थ - ( परमाणुम्मिय तइओ) परमाणुभां त्रीले लांग (दुपए से ) द्विप्रदेशी अन्धभां (पढमो तइओ) पडेले भने त्रीले लंग (होंति) थाय छे (तिपए से ) भयु प्रदेशी सुन्धमा (पढमो तइओ नवमो एक्कारसमो य) प्रथम, त्रीले, नवभो, अने अभ्या. २भेो, (चउप्पएसे) थे।था प्रदेशभा (पढमो तइओ नवमो दसमो एक्कारसमो य बारसमा तेवीसमो भंगा) प्रथम, तृतीय, नवभो, घ्शभी, भगीयारभेो मने मारभो भने तेवीसभा लौंग थाय छे श्री प्रज्ञापना सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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