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________________ प्रज्ञापनासूत्रे च, स्यात् चरमौ च अचरमश्च, नो चरमाणि च अचरमाणि च, स्यात् चरमश्च अवक्तव्यश्च, शेषा भङ्गाः प्रतिषेद्धव्याः, चतुष्प्रदेशिकः खलु भदन्त ! स्कन्धः पृच्छा, गौतम ! चतुष्प्रदे शिकः शलु स्कन्धः स्यात् चरमः १ नो अचरमः २ स्याद् अवक्तव्यः ३ नो चरमाणि, ४ चो अचरमाणि ५ नो अबक्तव्यानि ६ नो चरमश्च अचरमश्च ७ नो चरमश्च अचरमाणि च ८ स्यात् चरमौ च अचरमश्च ९ स्यात् चरमौ च अचरमौ च १० स्यात् चरमश्च अवक्तव्यश्च ११ स्यात् चरमश्च अवक्तव्यौ च १२ नो चरमाणि च अवक्तव्यश्च १६ नो चरमाणि च अवक्तव्यानि (सिय चरमाई च अचरमेय) कथंचित् चरमाणि और अचरम है (नो चरमाई च अचरमाइंच) चरमाणि और अचरमाणि नहीं है (सिय चरमेघ अवत्तव्यए य) कथंचित् चरम और अवक्तव्य है (सेसा भंगा पडिसे हेयव्या) शेष भंगों का निषेध करना चाहिए। (चउप्पएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा ?) हे भगवन् ! चौप्रदेशी स्कंध के विषय में पृच्छा ? (गोयमा ! चउप्पएसिए णं खंधे) हे गौतम ! चौपदेशी स्कंध (सिय चरमे) कथंचित् चरम है, (१) (नो अचरमे) अचरम नहीं है, (२) (सिय अवत्तव्वए) कथंचित् अवक्तव्य है (३) (नो चरमाइं) चरमाणि नहीं है, (४) (नो अचरमाइ) अचरमाणि नहीं है, (५) (नो अवत्तव्ययाई) अवक्तव्यानि नहीं है, (६) (नो चरमे य अचरमेय) चरम और अचरम नहीं है, (७) (नो चरमे य अचरमाई च) चरम और अचरमाणि नहीं है, (८) (सिय चरमाई अचरिमे य) कथंचित् चरमाणि और अचरम है, (९) (सिय चरमाइं च अचरमाइं च) कथंचित् चरमाणि और अचरमाणि है, (१०) (सिय चरमे य अवत्तव्वए य) कथं. तव्यानि नथी (नो चरमे य अचरमेय) य२भ अय२म नथी (नो चरमेय अचरमाणि) ५२म भयरमाण नथी (सिय चरमाइं च अचरमेय) थायित् यरमा भने अयरम छ, (नो चरमाइच अचरमाइंच) यरमाए भने सयरमा नयी (सिय चरमे य अवत्तव्वए य) थायित् यम भने २१४तव्य छ (सेसा भंगा पडिसेहेयव्वा) शेष सोनी निषेध ४२ न . (चउप्पएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा ? 3 लापन् । यो प्रदेशी २४न्धना विषयमा छ। (गोयमा ! चउप्पएसिए णं खंधे) गौतम ! यो प्रदेशी २४न्य (सिय चरमे) यथित छ ? (नो अचरमे) अन्य२म नथी २ (सिय अवत्तव्यए ४थायितु भवतय छ, 3 (नो चरमाइ) यरमा नथी, ४ (नो अचरमाई) अय२मा नथी, ५ (नो अवत्तव्बयाई) अवक्तव्यानि नथी, ६ (नो चरमेय नो अचरमेय) य२भ भने मन्य२म नयी ७ (नो चरमे य अचर. माई च) २२म भने सयरमाण नथी, ८ (सिय चरमाइं अचरिमेय) ४थायित् यसमा भने भयरम छ, ६ (सिय चरमाइं च अचरमाइं च) ययित् य२मा भने सयरमाण छे, १० (सिय चरमे य अवत्तव्यए य) ४ायित् यरम भने मतव्य छ, ११ (सिय चरम य अवतव्वयाई च) ४५यित् ३२ मन स१तव्यानि छ, १२ (नो चरमाइं च શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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