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प्रमेयवोधिनी टीका पद १० सू० ३ चरमाचरमत्वनिरूपणम् प्रदेशाः अनन्तगुणाः, लोकस्य चालोकस्य च चरमान्तप्रदेशाश्च अचरमान्तप्रदेशाश्च द्वयेऽपि विशेषाधिकाः, सर्वद्रव्याणि विशेषाधिकानि, सर्वप्रदेशाः अनन्तगुणाः, सर्वपर्यवाः अनन्तगुणाः ॥ सू०३॥
टीका-अथालोकादेश्वरमाचरमादिगतमल्पबहुत्वं प्ररूपयितुमाह-'अलोगस्स णं भंते ! अचरमस्स य चरमाण य, चरमंतपएसाण य अचरमंतपएसाण य' गौतमः पृच्छति-' हे भदन्त ! अलोकस्य खलु अवरमस्य च चरमाणाश्च चरमान्तप्रदेशानाञ्च अचरमान्तप्रदेशानाश्च मध्ये 'दव्वट्टयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठपएसट्टयाए' द्रव्यार्थतया, प्रदेशार्थतया, द्रव्यार्थप्रदेशाथेतया 'कयरे कयरेहितो अप्पा वा, बहुया वा तुल्ला वा, विसेसाहिया वा?' कतरे कतरेभ्यो ऽल्पा चा, बहुका बा, तुल्या बा विशेषाधिका वा भवन्ति ? भगवान् आह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'सव्वत्थोवे अलोगस्स दव्वळ्याए एगे अचरमे' सर्वस्तोकम् अलोकस्य द्रव्यार्थतया ख्यातगुणा हैं (अलोगस्स अचरमंतपएसा अणंतगुणा) अलोक के अचरमान्त प्रदेश अनन्तगुणा हैं (लोगस्स य अलोगस्स य) लोक और अलोक के (चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दोवि) चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश दोनों (विसेसाहिया) विशेषाधिक हैं (सव्वदव्वा विसेसाहिया) सर्वद्रव्य विशेषाधिक (सव्वपएसा अणंतगुणा) समस्तप्रदेश अनन्तगुणा (सव्व पज्जवा अणंतगुणा) सर्व पर्याय अनन्तगुणा हैं।
टीकार्थ-अब अलोक आदि के चरमाचरम आदि का अल्प बहुत्व प्ररूपित करने के लिए कहते हैं
श्रीगौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! अलोक के अचरम, चरमों, चरमान्तप्रदेशों और अचरमान्तप्रदेशों में से द्रव्य की अपेक्षा, प्रदेशों को अपेक्षा तथा द्रव्य-प्रदेशों की अपेक्षा कौन किससे अल्प है, बहुत है, तुल्य है अथवा विशेषाधिक हैं ? प्रदेश मसच्यातमा छ (अलोगस्स अचरमत पएसा अणंतगुणा) मन अयमान्त प्रदेश भन्नता छ (लोगस्स य अलोगस्स य) as मने मन (चरम तपएसा य अचरमतपएसाय दोवि) ५२मात भने सयमांत प्रटेश पन्ने (विसेसाहिया) विशेषाधि छे (सव्वदव्या विसेसाहिया) सर्व द्रव्य विशेषाधि छ (सव्व पएसा अणंतगुणा) समस्त प्रदेश अनन्त ॥ छ (सव्व पज्जवा अगंतगुणा) सब पर्याय मनन्त छ
ટીકાર્ય - હવે અલેક આદિના ચરમાં ચરમ આદિન અલ્પ બહુત્વ પ્રરૂપિત કરવાને માટે કહે છે –
શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે- હે ભગવન ! અલેકના અચરમ, ચરમ, અરમાન્ત પ્રદેશ અને અચરમાન્ત પ્રદેશોમાંથી દ્રવ્યની અપેક્ષાએ પ્રદેશની અપેક્ષાએ તથા દ્રવ્ય પ્રદેશોની અપેક્ષાએ કેણ કેનાથી અલ્પ છે, તુલ્ય છે. અથવા વિશેષાધિક છે ?
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श्री प्रशानसूत्र : 3