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प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ सू.१५ जघन्यगुणकालकादिपर्यायनिरूपणम् ८८१ न्यगुणशीतोऽसंख्येयप्रदेशिको जघन्यगुणशीतस्य असंख्येयप्रदेशिकस्य द्रव्याथतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया चतुःस्थानपतितः अवगाहनार्थतया चतुःस्थानपतितः स्थित्या चतुःस्थानपतितः वर्णादिपर्यवैः षट्स्थानपतितः, शीतस्पर्श पर्यवैः तुल्यः उष्ण स्निग्धरूक्षस्पर्शपयवैः षट्स्थानपतितः, एवमुत्कृष्टगुणशीतोऽपि अजवन्यानुस्कृष्टगुणशीतोऽपि एवञ्चव, नवरं स्वस्थाने षट्असंख्यातप्रदेशी जघन्यगुणशीत स्कंधों के अनन्त पर्याय कहे हैं ? (गोयमा ! जहण्णगुणसीए असंखेज्जपएसिए जहण्णगुणसीयस्स असंखेज्जपएसियस्त व्वट्टयाए तुल्ले) जघन्यगुण शीत असंख्यात. प्रदेशी स्कंध जघन्यगुण शीत असंख्यातप्रदेशी स्कंध से द्रव्य की दृष्टि से तुल्य (पएसट्टयाए चउठाणवडिए) प्रदेशों की अपेक्षा चतुःस्थानपतित (ओगाहणट्टयाए चउहाणवडिए) अवगाहना से चतुःस्थानपतित (ठिईए चउट्ठाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित (वण्णा इपज्जवेहिं छटाणवडिए) वर्ण आदि पर्यायों से षटूस्थानपतित (सीय. फासपज्जवेहिं तुल्ले) शीत स्पर्श के पर्यायों से तुल्य (उसिणिद्धलुक्खपज्जवेहिं छहाणवडिए) उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष पर्यायों से षट्स्थानपतित (एवं उक्कोसगुणसीए वि) इसी प्रकार उत्कृष्टगुण शीत भी (अजहण्णमणुक्कोसगुणसीए वि एवं चेव) मध्यमगुण शीत भी इसी प्रकार (नवरं सहाणे छट्ठाणवडिए) विशेष यह कि स्वस्थान में षट्स्थान पतित होता है શા કારણે એમ કહેવાય છે કે અસંખ્યાત પ્રદેશી જઘન્ય ગુણ શીત સ્કોના मनन्त पर्याय ४॥ ॐ ? (गोयमा ! जहण्णगुणसीए असंखेज्जपएसिए जहण्णगुणसीयस्स असंखेज्जपएसियस्स दब्वट्टयाए तुल्ले) धन्य गुण शीत અસંખ્યાત પ્રદેશી સ્કન્ધ જઘન્ય ગુણ શીત અસંખ્યાત પ્રદેશી સ્કલ્પથી द्रव्यनी हैटिये तुल्य (पएसट्टयाए चउढाणवडिए) प्रशानी अपेक्षा यतुःस्थान पतित (ओगाहणयाए चउदाणवडिए) साईनाथी यतु:स्थान पतित (ठिईए चउट्टाणवडिए) स्थितिथी यतुःस्थान पतित (वण्णाइपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए) qef मा पर्यायाथी पटस्थान पतित (सीय फास पज्जवेहिं तुल्ले) शीत સ્પર્શના પર્યાયથી તુલ્ય
(उसिणणिद्धलुक्खपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए) ] स्न मन ३६ पर्यायाथी पट्थान पतित (एवं उक्कोसगुण सीएवि) मे प्रमाणे Gbe शीत पर्याय ५१] समपा. (अजहण्णमणुक्कोस गुणसीए वि एवं चेव) मध्यम शुष्णु शीत यायो ५४ मे प्रमाणुना समपा. (नवरं छट्ठाणे छट्ठाणवडिए)
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શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨