________________
प्रमैयबोधिनी टीका पद ५ सू.१५ जघन्यगुणकालकादिपर्यायनिरूपणम् ८७५ केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-जवन्यगुणकर्कशानामनन्तप्रदेशिकानां स्कन्धानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यगुणकर्कशोऽनन्तप्रदेशिको जघन्यगुणकर्कशस्य अनन्तप्रदेशिकस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया षट्स्थानपतितः, अवगाहनार्थतया चतु:थानपतितः, स्थित्या चतुःस्थानपतितः, वर्णगन्धरसैः षट्स्थानपतितः कर्कशस्पर्शपर्यवै स्तुल्यः, अवशेषैः सप्तस्पर्शपर्यवैः षट्स्थानपतितः, एव. गुण कर्कश अनन्तप्रदेशी स्कंधों की पृच्छा ? (गोयमा ! अणंता पजवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जहण्णगुणकक्खडाणं अणंतपएसियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा कि जघन्यगुण कर्कश अनन्तप्रदेशी स्कंधों के अनन्त पर्याय कहे हैं (गोयमा ! जहण्णगुणकक्खडे अणंतपएसिए) हे गौतम ! जघन्यगुण कर्कश अनन्तप्रदेशी स्कंध (जहण्णगुणकक्खडस्स अणंतपएसियस्स) जघन्य गुण कर्कश अनन्तप्रदेशी स्कंध से (व्वट्टयाए तुल्ले) द्रव्य से तुल्य (पएसट्टयाए छट्ठाणवडिए) प्रदेशों से षट्स्थापतित (ओगाहणट्टयाए चउठाणवडिए) अवगाहना से चतुस्थानपतित (ठिईए चउहाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थापनतित (वण्णगंधरसेहिं छट्ठाणवडिए) वर्णो ,गंधों, रसों से षट्स्थानपतित (कक्खडफासपज्जवेहिं तुल्ले) कर्कश स्पर्श के पर्यायों से तुल्य (अवसेसेहिं ससफासपज्जवेहिं छहाणवडिए) शेष सात स्पर्शी के पर्यायों से षट्स्थानपतित
* मनन्त अशी २४.धोनी छ ? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) है गौतम ! अनन्त पर्याय ४ा छ (से केणगुणं भंते ! एवं वुच्चइ-जहण्ण गुण कक्खडाणं अणंतएपसियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! ॥ २॥ એવું કહ્યું કે જઘન્ય ગુણ કર્કશ અનન્ત પ્રદેશી સ્કન્ધના અનન્ત પર્યાય ४॥ छ ? (गोयमा ! जहण्णगुणकक्खडे अणंतपएसिए) 3 गौतम ! धन्य शुए। ४४ अन । प्रदेशी ४५ (जहण्णगुणकक्खडस्स अणंतपएसियरस) धन्य गुए।४४२मनन्त प्रदेशी २४न्यथा (दवट्ठयाए तुल्ले) द्रव्यथा तुभ्य (पएसद्वयाए छट्ठाणवडिए) प्रशोथी ५८२थान पतित (ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए) २५१
आसनाथी यतुः२थान पतित (ठिईए चउट्ठाणवडिए) स्थितिथी यतुःस्थान पतित (वण्णगंधरसेहिं छट्ठाणवडिए) पी, धौ, २साथी पटस्थान पतित (कक्खड फासपज्जवेहिं तुल्ले) ४४५ २५ पर्यायाथी तुव्य (अवसेसेहिं सत्तफास पज्जवेहिं छट्ठाणवडिए) शेष सात २५ना पर्याथा ५८स्थान पतित
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨