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________________ प्रमेयबोधिनी टोका पद ५ सू.१३ परमाणु पुद्गलपर्याय निरूपणम् ७९१ पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः तत् केनार्थेन भदन्त ! एवं मुच्यते अनन्त प्रदेशिकानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ! गौतम ! अनन्तप्रदेशिकः स्कन्धः अनन्तप्रदेयिकस्य स्कन्धस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः प्रदेशार्थतया षट्स्थानपतितः अवगाहनार्थतया चतुःस्थानपतितः स्थित्या चतुः स्थानपतितः वर्णगंधरसस्पर्शपर्यवैः षट्स्थानपतितः, एकप्रदेशावगाढानां पुद्गलानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः चतुःस्थानपतित (वण्णाइ उचरिल्ल चउफासेहि य छट्ठाणचडिए) वर्णादि से तथा उपर्युक्त चार स्पर्शो से षट्स्थापतित (अणतपए सियाणं पुच्छा ?) अनन्तप्रदेशी स्कंधों के पर्यायों की पृच्छा ? (गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणद्वेणं भते ! एवं बुच्चइ-अनंतपए सिथाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे भगवन् ! किस कारण ऐसा कहा है कि अनन्तप्रदेशी स्कंधों के अनन्त पर्याय कहे हैं (गोयमा ! अनंतपएसिए खंधे अनंत एसियस्स खंधस्स दव्वट्टयाए तुल्ले) हे गौतम! अनन्तप्रदेशी स्कंध अनन्तप्रदेशी स्कंध से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य हैं (पएसट्टयाए) प्रदेशों की अपेक्षा से (छट्ठाणवडिए) षट्स्थानपतित है (ओगाहणयाए चउट्ठाणवडिए) अवगाहना से चतुःस्थानपतित है (ठिईए चउट्ठाणचडिएं) स्थिति से चतुःस्थानपतित है (वण्णगंधर सफासपज्जवेहि छट्टाणवडिए) वर्ण, गंध, रस, स्पर्श के पर्यायों से पट्टस्थानपतित है ( एगपएसोगादाणं पोग्गलाणं पुच्छा ?) एक प्रदेश में अवगाढ पुद्ग्लों की पृच्छा ? (गोयमा ! अनंता पज्जचा पण्णत्ता) हे गौतम ! વર્ણાદિથી તથા ઉપર્યુક્ત ચાર સ્પૉંથી ષસ્થાન પતિત ( अनंत पसियाणं पृच्छा ?) अनन्त प्रदेशी सुन्धाना पर्यायांनी पृथ्छा ? ( गोयमा ! अणता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम! अनन्त पर्याय ह्या छे (सेकेण द्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ - अनंतपएसियाण अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे भगवन् ! शा કારણે એમ કહ્યું છે કે અનન્ત પ્રદેશી કન્યાના અનન્ત પર્યાય કહ્યા છે ? (गोयमा ! अनंत पएसिए खंधे अनंत पएसियस्स खंधस्स दव्बट्टयाए तुल्ले) हे गौतम ! અનન્ત પ્રદેશી સ્કન્ધ ખીજા અનન્ત પ્રદેશી સ્કન્ધથી દ્રવ્યની અપેક્ષાએ તુલ્ય છે (पएसट्टयाए) अहेशानी अपेक्षाये (छट्टाणवडिए) षटस्थान पतित छे (ओगाहण ट्टयाए चउट्ठाणवडिए) अवगाहनाथी यतुःस्थान पतित छे (ठिईए चउट्ठाणवडिए) स्थितिथी यतुःस्थान पतित छे (वण्णगंधरसफासपज्जवेहिं छट्ठाण वडिए) वर्षा, ગંધ, રસ, સ્પર્શી ના પર્યાયાથી ષટસ્થાન પતિત છે ( एगपएसो गाढाणं पोग्गलाणं पुच्छा ?) मे अहेशभां अवगाढ युद्दगबोनी શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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