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________________ प्रज्ञापनासूत्रे प्रद ६९४ मुत्कृष्टगुणकालकोऽपि, अजघन्यानुत्कृष्टगुणकालकोऽपि एवञ्चैव, नवरं स्वस्थानेषट्स्थानपतितः, एवं पञ्चवर्णाः, द्वौ गन्धौ, पञ्चरसाः, अष्टौ स्पर्शाः भणितव्याः, जघन्याभिनिबोधिकज्ञानिनां भदन्त ! द्वीन्द्रियाणाम् कियन्तः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-जघन्याभिनिबोधिकज्ञानिनां द्वीन्द्रियाणाम् अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जयन्याभिनिवोधिकज्ञानी द्वीन्द्रियो जघन्याभिनिबोधिज्ञादर्शन के पर्यायों से (छट्ठाणवडिए) षट्स्थापतित है (एवं उक्को सगुणकालए वि) इसीप्रकार उत्कृष्ट कालागुण वाला भी (अज. हण्णमणुकोसगुणकालए वि एवं चेव) मध्यमगुण कृष्ण भी इसी प्रकार (णबरं सहाणे छट्ठाणवडिए) विशेषता यह कि स्वस्थान में भी वह षट्स्थानपतित है (एवं चेव पंच वण्णा) इसी प्रकार पांच वर्णों (दो गंधा) दो गंधों (पंच रसा) पांच रसों (अट्ठफासा) आठो स्पर्शो का (भाणियब्वा) कथन करना चाहिए (जहण्णाभिणियोहियनाणीणं भंते ! बेइंदियाणं) हे भगवन् ! जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी द्वीन्द्रियों के (केवइया पज्जवा पण्णत्ता कितने पर्याय कहे हैं ? (गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ-जहण्णाभिणिघोहियनाणीणं बेइंदियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?) किस कारण से भगवन् ! ऐसा कहा है कि जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी द्वीन्द्रियों के अनन्त पर्याय कहे हैं ? (गोयमा ! जहण्णाभिणि हि) मे भज्ञानायी (अचक्खुदंसणपज्जवेहिय) मने २५यक्षुशनना पर्यायाथी (छद्राण वडिए) षटस्थान पतित छ (एवं उक्कोसगुणकालए वि) 22 आरे अष्ट ॥ ॥ ५ (अजहण्णमणुकोसगुणकालए वि एवं चेव) मध्यम गुण एy पण से प्रारे (णवर सटाणे छठाणवडिए) विशेषता से स्वस्थानमा ५ ते ५८स्थान पतित छ (एवं चेव पंचवण्णा) ये रीते पांय पणे (दोगंधा) ये गये। (पंच रसा) पांय रसे। (अट्ठ फासा) मा २५नु (भाणियब्वा) ४थन ४२ मध्ये. (जहण्णाभिणि बोहियनाणीणं भंते ! बेइंदियाणं) हे भगवन् ! धन्य माननिमाधि४ शानी दीन्द्रियोन(केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?) । पर्याय ४ा छ (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) गौतम ! मनन्त पर्याय छ (से केणटटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जहण्णाभिणिबोहियनाणीणं बेइंदियाणं अणंता पज्जवा पण्णता ?) मगन् ! PA॥ ॥२) मेम ४धुंछे हैं धन्य मालिनिमावि ज्ञानी શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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