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प्रज्ञापनासूत्रे पमाणि, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन पञ्चविंशतिः सागरोपमाणि अन्तर्मुहूतोंनानि, उत्कृष्टेन पइविंशतिः सागरोपमाणि, अन्तमहानानि, मध्यममध्यमग्रैवेयकदेवानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन षविंशतिः सागरोपमाणि, उत्कृष्टेन सप्तविंशतिः सागरोपमाणि, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन षड्विंशतिः सागरोउक्कोसेणं छव्वीसं सागरोवमाई) हे गौतम! जघन्य पच्चीस सागरोपम की, उत्कृष्ट छब्बीस सागरोपम की (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तकों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं) हे गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की।
(पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तकों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेणं पणवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पच्चीस सागरोपम की (उक्कोसेणं छब्बीसं सागरोचमाई अंतोमुहुत्तूणाई) उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम छब्बीस सागरोपम की।
__ (मज्झिममज्झिमगेविज्जगदेवाणं पुच्छा ?) मध्यम-मध्यम अवेयक देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेणं छब्बीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं सत्तवीसं सागरोवमाई) हे गौतम ! जघन्य छब्बीस सागरोपम की, उत्कृष्ट सताईस सागरोपम की (अपज्जत्तयाणे पुच्छा ?) अपर्याप्तकों की कितनी ? (गोयना ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्त) हे गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी पीस सागरोपम, मने उत्कृष्ट ७०वीस सायमनी डाय छे. (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?)२५५तिनी स्थिति सी छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं वि उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं) गौतम ! धन्य ५९] भने उत्कृष्ट ५९ अन्तभुत नी डाय छ. (पज्जत्तयाण पुच्छा ?) पर्यानी स्थिति सी छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं पणवीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तणाई, उक्कोसेण छब्बीसं सागरोवमाई) 3 गौतम ! જઘન્ય અન્તર્મુહૂર્ત ઓછા પચીસ સાગરેપની, ઉત્કૃષ્ટ અન્તર્મુહૂત ઓછા છવીસ સાગરેપમની છે.
___ (मज्झिम मज्झिम गेविज्जगदेवाणं पुच्छा ? मध्यम-मध्यम अवय४ वानी स्थिति सी छे ? (गोयमा ! जहण्णेणं छब्बीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं सत्तावीस जागरोवमाई) 3 गौतम ! धन्य ७०पीस सा५मनी, उत्कृष्ट सत्यापीस सापभनी डाय छ. (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) २५५र्यातहीनी स्थिति सी छे ? (गोयमा ! जहण्णेणं वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) 3 गौतम ! धन्य ५५५ मने अष्ट
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨