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प्रमेयबोधिनी टीका पद ४ सू.०९ वैमानिकदेवानां स्थितिनिरूपणम् ५१७ अन्तर्मुहूर्तोनानि, ईशानेकल्पे देवानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन सातिरेक पल्यो. मम्, उत्कृष्टेन सातिरेके द्वे सागरोपमे, अपर्याप्तदेवानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन सातिरेक पल्योपमम् अन्तर्मुहानम्, उत्कृष्टेन सातिरेके द्वे सागरोपसे अन्तर्मुहूतौने, ईशाने कल्पे देवीनां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन सातिरेकं पल्योपमम् उत्कृष्टेन पञ्चपञ्चाशत् पल्योपमानि, ईशाने कल्पे देवीनाम् अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, ईशाने कल्पे पर्याप्तिकानां ____ (ईसाणे कप्पे देवाणं पुच्छा ?) हे भगवन् ! ईशान कल्प में देवों की स्थिति कितनी? (गोयमा ! जहण्णेणं साइरेगं पलिओवमं, उक्को. सेणं साइरेगाइं दो सागरोवमाइं) हे गौतम ! जघन्य कुछ अधिक एक पल्योपम की, उत्कृष्ट कुछ अधिक दो सागरोपम की (अपजत्त देवाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहपणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) हे गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट
अन्तर्मुहूर्त की (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तकों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेणं साइरेग पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं साइरेगाइं दो सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई) हे गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त कम कुछ अधिक पल्योपम की उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम दो सागरोपम से कुछ अधिक की।
(ईसाणे कप्पे देवीणं पुच्छा ?) ईशान कल्प में देवियों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेणं साइरेगं पलिओवमं, उक्कोसेणं पणपन्नं पलिओवमाई) हे गौतम ! जघन्य एक पल्योपम से कुछ अधिक, माई) गौतम ! धन्य sis अधि४ मे पक्ष्या५मनी, कृष्ट xiss अधि: मे सामनी (अपज्जत्त देवाणं पुच्छा ?) अपर्याप्त हेवानी स्थिति सी ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) गौतम ! धन्य भने अष्ट मन्तभुतानी (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पानी स्थिति zeel ? (गोयमा ! जहण्णेण साइरेगं पलिओवमं अंतोमुहुत्तणं, उक्कोसेणं साइरेगाइं दो सागरोवमाई अंतोमुहुत्तणाई) गौतम ! धन्य मन्तभुडूतम ४४४ qधारे ५८।५मनी मने ઉત્કૃષ્ટ બે સાગરોપમની
(ईसाणे कप्पे देवीण पुच्छा ?) ४ान५मा हेवियोनी स्थिति सी ?) (गोयमा ! जहण्णेणं साइरेगं पलिओवम, उक्कोसेणं पणपन्नं पलिओवमाई) गौतम !
धन्य ४ ५८यो५मथी six अधि४, पृष्ट ५.यावन ५८।५मनी (ईसाणे कप्पे देवीणं अपज्जत्तियाणं पुच्छा ?) JAIन८५मा अ५मिवियोनी स्थिति की ?
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨