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प्रमैयबोधिनी टीका पद ४ सू.०९ वैमानिकदेवानां स्थितिनिरूपणम् ५१५ देवीनां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तिकानां देवीनां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन पल्योपमम् अन्तर्मुहूतॊनम्, उत्कृष्टेन पश्चा. शत् पल्योपमानि अन्तर्मुहूतौनानि, सौधर्मे कल्पे परिग्रहाणां देवीनां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन पल्योपमम् उत्कृष्टेन सप्तपल्योपमानि, अपर्याप्तकपरिग्रह देवीनां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, परिग्रहाणां की (अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा ?) अपर्याप्तक देवियों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेणावि अंतोमुहुत्तं) हे गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त (पजत्तियाणं देवीणं पुच्छा ?) पर्यातक सौधर्म-देवियों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं पण्णासं पलिओचमाई अंतोमुहुत्तूणाई) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक पल्योपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचास पल्योपम की।
(सोहम्मे कप्पे परिग्गहियाणं देवीणं पुच्छा ?) सौधर्म कल्प में परिगृहीता देवियों की स्थिति कितनी ? (गोयमा! जहण्णणं पलि
ओवमं, उक्कोसेणं सत्त पलिओवमाई) हे गौतम ! जघन्य एक पल्योपम, उत्कृष्ट सात पल्योपम की (अपज्जत्तिय परिग्गहिय देवीणं पुच्छा ?) अपर्याप्त परिगृहीता देवियों की कितनी स्थिति ? (गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) हे गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त की (परिग्गहियाणं पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा!)
४ पक्ष्यापम कृष्ट पयास पस्योपमनी (अपज्जत्तियाणं पुच्छा ?) अपयति हेवियोनी स्थिति सी ? (गोयमा ! जहण्णेणं वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) गौतम!
धन्य ५५ मन्तभुत, मने उत्कृष्ट ५ मन्तभुत (पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा ?) पर्यास सौधम वियोनी स्थिति क्षी ? (गोयमा ! जहण्णेणं पलि. ओवमं, अंतोमुहुत्तण, उक्कोसेणं सत्तपलिओवमाई अंतोमुहत्तणाई ) गौतम ! જઘન્ય અન્તર્મુહૂર્ત, ઓછા, એક પાપમની ઉત્કૃષ્ટ અન્તર્મુહૂર્ત ઓછા સાત પલ્યોપમની.
(सोहम्मे कप्पे परिग्गहियाणं देवीणं पुच्छा ?) सौधर्म ४८५मा परिडिता हेवियोनी स्थिति सी ? (गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं सत्तपलिओवमं) गौतम ! ४३न्य मे पक्ष्यो५म, कृष्ट सातपक्ष्योपभनी (अपज्जत्तिय परिग्गहिय देवीणं पुच्छा ?) अपर्याप्त परिडीत वियोनी सी स्थिति ? (गोयमा ! जहण्णेणि वि उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं) गौतम ! धन्य मन. कृष्ट मन्त. भुइतनी (परिग्गहियाणं पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा ?) ५२डीतपर्यातवियोनी
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨