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प्रमेयबोधिनी टीका पद ४ सू.०७ वानव्यन्तराणां स्थितिनिरूपणम् ४९५
छाया-वानव्यन्तराणां भदन्त ! देवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन दशवर्षसहस्राणि, उत्कृष्टेन पल्योपमम्, अपर्याप्तकवानव्यन्तराणां देवानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन दशवर्षसहस्राणि अन्तर्मुहूर्तोनानि, उत्कृष्टेन पल्योपमम् अन्तर्मुहूर्तानम्, वानव्यन्तरीणाम् देवीनां पृच्छा ?, गौतम ! जघन्येन
वानव्यन्तर स्थिति वक्तव्यता शब्दार्थ-(वाणमंतराणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! वानव्यन्तर देवों की कितने काल की स्थिति कही है ? (गोयमा) हे गौतम ! जहण्णेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं पलिओवर्म) जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट एक पल्योपम (अपज्जत्त वाणमंतराणं देवाणं पुच्छा?) अपर्याप्त वानव्यन्तर देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा !) हे गौतम ! (जहपणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की (पज्जत्तयाणं पुच्छा) पर्याप्तों की कितनी ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं) जघन्य दस हजार वर्ष की उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम की।
(वाणमंतरीणं देवीणं पुच्छा ?) वानव्यन्तरी देवियों की स्थिति कितनी ? (गोयमा !) हे गौतम ! (जहण्णेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं) जघन्य दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट अर्ध पल्योपम
વાનરાન્તર દેવેની સ્થિતિની વક્તવ્યતા शहाथ-(बाणमंतराणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) भगवन् ! पाव्य-तर हेवानी जनी स्थिति ४सी छ ? ३ (गोयमा!) गौतम ! (जहणेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं पलिओवमं) धन्य ६२ १२ ११, उत्कृष्ट मे ५८या५म (अपज्जत्त वाणमंतराणं देवाणं पुच्छा ?) २५५यति पान. व्य-त२ वानी स्थिति टही ? (गोयमा !) : गौतम ! (जहण्णेण वि उक्को. सेण वि अंतोमुहुत्तं) ४धन्य भने उत्कृष्ट ५५] अन्तमुतनी (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तीनी सी ? (गोयमा !) 3 गौतम ! (जहण्णेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तणं) ४३न्य ४२॥ १२ वषनी कृष्ट मन्तभुत ઓછા પલ્યોપમ
(वाणमंतरीणं देवीणं पुच्छा ?) वानव्यन्तरी हेवियानी स्थिति सी ? (गोयमा !) गौतम ! (जहण्णेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवम) धन्य ४१ १२ १, पृष्ट २० पक्ष्यायनी (अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा ?)
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨