________________
प्रमेयबोधिनी टीका पद ४ सू.०५ पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां स्थितिनि० ४८९ पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन द्वि चत्वारिंशद्वर्षसहस्राणि, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तमुहूर्तम्, उत्कृष्टेन द्वा चत्वारिंशद्वर्षसहस्राणि अन्तर्मुहूर्तोनानि, गर्भव्युत्क्रान्तिक भुजपरिसर्पस्थल वरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तमुहूर्तम्, उत्कृष्टेन पूर्वकोटी, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् कितनी ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं वायालीसं वासहस्साई) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट बयालीस हजार वर्ष की (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तकों की कितनी ? (गोयमा) हे गौतम ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) जघन्य
और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त्त की (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तों की कितनी ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहाणेणं अंतोमुहत्त, उक्कोसेणं वायालीसं वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम वयालीस हजार वर्ष की। ___ (गम्भवक्कंतिय भुयपरिसप्प थलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) गर्भज भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की स्थिति कितनी ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहत्त, उक्कोसेणं पुव्वकोडी) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट पूर्वकोटि की (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तकों की ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेवि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की (पज्जत्तयाणं
गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बायालीसवाससहस्साई) ४धन्य मन्त. भुतनी, उत्कृष्ट में तालीस ॥२ वर्षनी (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) २५५र्याप्त. छोटी सी स्थिति ? (गोयमा !) 3 गौतम ! (जहण्णेणं वि उक्कोसेण वि अंतो. मुहुत्त) धन्य भने उत्कृष्ट ५९ मन्तभुतनी (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पसिनी हैटसी ? (गोयमा !) 8 गौतम ! (जहण्णेणं अतोमुहत्तं, उक्कोसेण वायालीस वाससहस्साई अंतोमुहुत्तणाई) धन्य मन्तभुत नी, उत्कृष्ट मन्तभुत ઓછા બેંતાલીસ હજાર વર્ષની
(गब्भवतिय भयपरिसप्प थलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं पुच्छा १) म. सु. परिस५ स्थ६५२ ५येन्द्रिय तिय यानी स्थिति el ? (गोयमा !) ॐ गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी) ४५न्य मन्तभुत उत्कृष्ट पूटिनी (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अ५र्यानी ? (गोयमा!) गौतम ! (जण्णेणं वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) धन्य अने. कृष्ट मन्तभुतनी
प्र० ६२
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨