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________________ ४८० प्रज्ञापनासूत्रे गणेणं अतोमुहूत्त, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागं, अंतोमुहुत्तूणं ॥सू० ५॥ __ छाया–पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन त्रीणि पल्योपमानि अपर्याप्तकानां, पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जधन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन त्रीणि पल्योपमानि अन्तर्मुहूर्तानानि, संमूच्छिमपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्क पंचेन्द्रिय तिर्यचों की स्थिति शब्दार्थ-(पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) पंचेन्द्रिय तिर्यचों की हे भगवन् ! कितने काल तक की स्थिति कही है (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तीन पल्योपम (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्सकों को स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओषमाइं अंतोमुहुत्तूणाई) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम। (समुच्छिमपंचिंदिय तिरिक्वजोणियाणं पुच्छा ?) संमूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यचों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुचकोडी) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट करोड - પંચેન્દ્રિય તિયાની સ્થિતિ साथ-(पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता !) पदय तिय यानी सावन्ट मा जनी स्थिति ही छ ? (गोयमा) गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई) “धन्य मन्तभु. इत; कृष्ट न पन्या५म (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तोनी स्थिति छ ? (गोयमा !) 3 गौतम ! (जहण्णेणं वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) धन्य ५ अने Srकृष्ट ५] मन्तभुत नी (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्यापानी स्थितिनी २छ। ? (गोयमा !) गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं अंतोमहत्तणाई) धन्य मन्तभूति, भने अष्ट मन्तभूति माछात्र पक्ष्यापम (समुच्छिम पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) सभूमि पथेन्द्रिय तिय यानी स्थिति सी छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्व શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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