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प्रमेयबोधिनी टीका पद ४ सू.०४ द्वीन्द्रियादीनां स्थितिनिरूपणम् ४७५ भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् , उत्कृष्टेन एकोनपञ्चाशत् रात्रिन्दिनानि, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन एकोनपञ्चाशत् रात्रिन्दिनानि अन्तर्मुहूर्तोनानि, चतुरिन्द्रियाणां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृप्टेन षण्मासान, अपर्याप्तकानाम् पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बारह वर्ष की है। __(तेइंदियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) त्रीन्द्रियों की भगवन् ! कितने काल तक स्थिति कही है ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्त, उक्कोसेणं एगुणवण्णं राइ दियाई) गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट उनपचास रात दिन (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) गौतम ! जघन्य भी, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त (पज्जत्तयाणे पुच्छा) पर्याप्तकों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं एगुणवण्णं राईदियाई अंतोमुहत्तूणाई) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम उनपचास रात्रि-दिन । ___ (चरिंदियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) चौइन्द्रियों की भगवन् ! कितने काल तक स्थिति कही है ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्त, उक्कोसेणं छम्मासा) गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त,
(तेइंदियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) त्रीन्द्रियानी मापन ॥ ॥ सुधील स्थिति ही छ ? (गोयमा ! जहण्णेण अंतोमुहुत्त', उक्कोसेण एगुणपण्ण राइंदियाइं) गौतम ! धन्य मन्तभुत, उत्कृष्ट सागर पयास २d. हिवस (अपज्जत्तयाण पुच्छा ?) २५५र्यातोनी स्थितिनी छ। ? (गोयमा !) जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) गौतम ! धन्य५] अकृष्ट ५६४ मन्त. भुत (पज्जत्तयाण पुच्छा) पर्याप्तीनी स्थितिनी २७ ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं एगूणपण्ण राई दियाइं अंतोमुहुत्तणाई) गौतम ! धन्य અન્તર્મુહૂર્ત, ઉત્કૃષ્ટ અન્તર્મુહૂર્ત ઓછા એગણ પચાસ રાત્રિ દિવસ
(चउरिदियाण भते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) यतुरिन्द्रियानी मापन टमा ७ सुधी स्थिति ४ी छ ? (गोयमा !) जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छम्मासा ) गौतम ! धन्य मन्तमुंडूत , उत्कृष्ट छभास (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?)
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨