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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ४ सू.०२ देवदेवीनां स्थितिनिरूपणम् ४६१ पर्याप्तिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन दशवर्षसहस्राणि अन्तर्मुहूतो नानि, उत्कृष्टेन देशोनं पल्योपमम् अन्तर्मुहूर्तोनम्, एवम् एतेन अभिलापेन औधिकापर्याप्तक पर्याप्तकसूत्रत्रयम् देवानाश्च देवीनाश्च ज्ञातव्यं यावत् स्तनितकुमाराणां यथा नागकुमाराणाम् ॥ टीका- अत्रापि देवानां देवीनाच अपर्याप्तावस्थायाम् अन्तर्मुहूर्तमात्रं स्थिति सद्भावात् पर्याप्तावस्थायाम् अन्तर्मुहूर्त न्यूना स्थितिः सर्वत्रैव जघन्येनापि अवसेया, शेषव्याख्यानं निगदसिद्धम् ।।सू० २॥ वि अंतोमुहुत्तं) जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त (पज्ज. त्तियाणं पुच्छा ?) पर्याप्तक सुवर्णकुमारी देवियों के विषय में पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाइ, उक्कोसेणं देसणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूर्ण) जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम देशोन पल्योपम की। (एवं) इस प्रकार (एएणं अभिलावेणं) इसी अभिलाप से-इन्हीं शब्दों में (ओहिय-पज्जत्तय-अपज्जत्तय सुत्तयं) ओघिक अर्थात् सामान्य, पर्याप्तक और अपर्याप्तक के सूत्र (देवाण य देवीण य) देव और देवियों के विषय में (नेयव्ब) जानने चाहिए (जाव थणिय कुमाराणं) स्तनित कुमारों पर्यन्त (जहा नागकुमाराणं) नागकुमारों के समान । टीकार्थ-यहां भी देवों और देवियों की अपर्याप्त अवस्था में अन्तर्मुहूर्त्त की स्थिति है, अतएव पर्याप्त अवस्था में अन्तर्मुहूर्त कम स्थिति कही गई है । शेष व्याख्या शब्दार्थ के अनुसार सम. झना चाहिए ॥२॥ हवियाना विषयमा छ ? (गोयमा !) 3 गौतम ! (जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तणाई उक्कोसेणं देसूणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तणं) धन्यमन्तत छ। દશ હજાર વર્ષની, ઉત્કૃષ્ટ અક્તમુહૂર્ત ઓછા દેશેન પલ્યોપમની છે. (एवं) २(एएणं अभिलावेणं) २॥ मनिसाथी-मे शहीमा (ओहिय-पज्जत्तय-अपज्जत्तयसुत्तयं) मौघि २मर्थात् सामान्य, यात अने. २०५४ना सूत्र (देवाण य देवीणय) हेवे। मने वियाना विषयमा (नेयव्व) on] नये (जाव थणियकुमाराणं) स्तनितमा। पन्त (जहा नागकुमाराण) नागभाशनासमान. ટીકાર્થ–આહિં પણ છે અને દેવિયેની અપર્યાપ્ત અવસ્થામાં અન્ત મહત્ની સ્થિતિ છે. તેથીજ પર્યાપ્ત અવસ્થામાં અંતમુહર્ત ઓછી સ્થિતિ કહેલી છે. શેષ વ્યાખ્યા, શબ્દાર્થના અનુસાર સમજવી જોઈએ પરા શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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